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"धूप हुई अंधी / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

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न हुआ दंडित
दंड का भागी
छूट गया
हाथ आया अपराधी
जिसने किया न्याय
नहीं किया न्याय
चक्कर में चूक गया
मक्कर के,
न्यायी
लिखना था सजा
और लिख गया रिहाई
सच का सच नहीं हुआ
धूप हुई अंधी
कागज में बैठ गई
जगह-जगह मक्खी
पानी ने नहीं सुने पानी के बोल
गलत-सलत निर्णय का
गलत रहा रोल।

रचनाकाल: २३-०४-१९६८