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"मैंने अब तक मति बेची है / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

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17:37, 9 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

मैंने
अब तक
मति बेची है
सात साल तक
कीलित रहकर
मन की मुक्त
प्रकृति बेची है
हर हफ़्ते के
सोमवार से शुक्रवार तक
मैंने अपने
हर सूरज को
चालिस रूपए में बेचा है
और शनीचर के सूरज को
उससे आधे में बेचा है
छुट्टी का इतवारी सूरज
बेच न पाया
मेरे कोई काम न आया

रचनाकाल: १८-०६-१९७०