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19:15, 9 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
न द्वार खुला
न दीवार गिरी
हम
मन की मछली
मन के तालाब में मारते रहे
अहं का जाल
स्वयं को
छलने के लिए
पसारते रहे
रचनाकाल: १२-१०-१९७०