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अपने खेत में / नागार्जुन

654 bytes added, 13:52, 9 जनवरी 2011
<poem>
अपने खेत में....
 
जनवरी का प्रथम सप्ताह
खुशग़वार दुपहरी धूप में...
इत्मीनान से बैठा हूँ.....
 
अपने खेत में हल चला रहा हूँ
इन दिनों बुआई चल रही है
मेरे लिए बीज जुटाती हैं
हाँ, बीज में घुन लगा हो तो
अंकुर कैसे निकलेंगे! 
जाहिर है
बाजारू बीजों की
निर्मम छँटाई छटाई करूँगा
खाद और उर्वरक और
सिंचाई के साधनों में भी
पहले से जियादा ही
चौकसी बरतनी है
मकबूल फिदा फ़िदा हुसैन की
चौंकाऊ या बाजारू टेकनीक
हमारी खेती को चौपट
कर देगी!
जी, आप
अपने रूमाल में
गाँठ बाँध लो, बिल्कुल!बिलकुल !!सामने, मकान मालिक कीबीवी और उसकी छोरियाँइशारे से इजा़ज़त माँग रही हैंहमारे इस छत पर आना चाहती हैंना, बाबा ना अभी हम हल चला रहे हैंआज ढाई बजे तक हमेंबुआई करनी है....
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