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"उस आसमाँ को शामो-सहर याद किया जाय / मयंक अवस्थी" के अवतरणों में अंतर
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20:38, 9 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
उस आसमाँ को शामो-सहर याद किया जाय
और इस कफ़स से खुद को न आज़ाद किया जाय
परवान चढ़ रहा है तिरा दर्दे-जिगर आज
लुकमान किसलिये कोई उस्ताद किया जाय
मुद्दत से कोई दिल पे अगर लोट रहा हो
फ़न उसकी तरह खुद में भी ईजाद किया जाय
जो बेहिसी की कब्र में अरमान गड़े हैं
दिल उसको खोद -खोद के आबाद किया जाय
तेशा जुनूँ का मार के शीरीं -ए-ग़ज़ल पर
अपने सुख़न को आज का फ़रहाद किया जाय
जुगनू तो ये ही ख्वाब संजोये हैं सरे-शाम
अब ख़ुद को आफ़ताब की औलाद किया जाय
थकने लगी है राहे-वफा सोच रहा हूँ
किस राह अब हयात को बर्बाद किया जाय