भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"वह पिनाक था परंपरा का / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=कुहकी कोयल खड़े पेड़ …) |
छो ("वह पिनाक था परंपरा का / केदारनाथ अग्रवाल" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite))) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:04, 9 जनवरी 2011 का अवतरण
जो धनुष
राम ने तोड़ा,
वह पिनाक था
परंपरा का,
उसे राम ने तोड़ा,
भू कन्या
सीता को ब्याहा;
ब्याह सके थे
जिसे न कोई
उसे तोड़कर
राज-वंश के योद्धा
तब
उस युग में
परंपरा ही शिव थी
इसीलिए वह धनुष बन गई शिव की
जनक
प्रकृति से विद्रोही थे
परंपरा के
इसीलिए प्रण ठाना।
तोड़ो धनुष-
ब्याह लो सीता-
जो जमीन की सादर बेटी
यह सच बात
आज भी सच है :
तोड़ो
तोड़ो
परंपरा को
बनो राम
ब्याहो
धरती की बेटी सीता।
रचनाकाल: २७-०८-१९७२, रात