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"क्या तुम नभ पर / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
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23:21, 9 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
क्या तुम नभ पर चलते चलते,
संगी साथी बिना विचरते,
अवनी अपलक, नित्य निखरते,
घटते बढ़ते और बदलते,
प्यार न पाकर पियराए हो,
शून्य नयन से पथराए हो?
शैली की कविता ‘टु द मून’ का अनुवाद
रचनाकाल: १२-०८-५६