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"वह हर एक बात पर कहना कि यों होता तो क्या होता / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
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(नया पृष्ठ: न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता,<br /> डुबोया मुझको होने …) |
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न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता,<br /> | न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता,<br /> | ||
डुबोया मुझको होने ने न मैं होता तो क्या होता !<br /> | डुबोया मुझको होने ने न मैं होता तो क्या होता !<br /> | ||
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+ | ना होता गर जुदा तन से तो जहानु पर धरा होता!<br /> | ||
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+ | हुई मुद्दत कि 'ग़ालिब' मर गया पर याद आता है,<br /> | ||
+ | वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता !<br /> |
15:48, 10 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता,
डुबोया मुझको होने ने न मैं होता तो क्या होता !
हुआ जब गम से यूँ बेहिश तो गम क्या सर के कटने का,
ना होता गर जुदा तन से तो जहानु पर धरा होता!
हुई मुद्दत कि 'ग़ालिब' मर गया पर याद आता है,
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता !