"कल़ायण ! / मनुज देपावत" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='मनुज' देपावत |संग्रह= }} Category:मूल राजस्थानी भाषा {{…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
<Poem> | <Poem> | ||
धरती रौ कण -कण ह्वे सजीव,मुरधर में जीवण लहरायौ । | धरती रौ कण -कण ह्वे सजीव,मुरधर में जीवण लहरायौ । | ||
− | वा आज कल़ायण घिर आयी ,बादळ अम्बर मं गहरायो ।। | + | वा आज कल़ायण घिर आयी, बादळ अम्बर मं गहरायो ।। |
− | वा स्याम वरण उतराद दिसा ,"भूरोड़े- भुरजां" री छाया ! | + | वा स्याम वरण उतराद दिसा, "भूरोड़े- भुरजां" री छाया ! |
− | लख मोर मोद सूँ नाच उठ्यौ ,वे पाँख हवा मं छितरायाँ ।। | + | लख मोर मोद सूँ नाच उठ्यौ, वे पाँख हवा मं छितरायाँ ।। |
− | तिसियारै धोरां पर जळकण ,आभै सूँ उतर-उतर आया । | + | तिसियारै धोरां पर जळकण, आभै सूँ उतर-उतर आया । |
− | ज्यूँ ह्वे पुळकित मन मेघ बन्धु ,मुरधर पर मोती बरसाया ।। | + | ज्यूँ ह्वे पुळकित मन मेघ बन्धु, मुरधर पर मोती बरसाया ।। |
− | बौ अट्टहास सुन बादळ रौ,धारोल़ा धरती पर आया । | + | बौ अट्टहास सुन बादळ रौ, धारोल़ा धरती पर आया । |
− | धडकै सूँ अम्बर धूज उठ्यौ ,कांपी चपल़ा री कृस काया ।। | + | धडकै सूँ अम्बर धूज उठ्यौ, कांपी चपल़ा री कृस काया ।। |
− | पण रुक-रुक नै धीरै -धीरै ,वां बूंदा रौ कम हुयौ बेग । | + | पण रुक-रुक नै धीरै -धीरै, वां बूंदा रौ कम हुयौ बेग । |
− | यूं कर अमोल निधि -निछरावळ ,यूं बरस-बरस मिट गया मेघ ।। | + | यूं कर अमोल निधि -निछरावळ, यूं बरस-बरस मिट गया मेघ ।। |
− | पणघट पर 'डेडर' डहक उठ्या ,सरवर रौ हिवड़ो हुळसायौ । | + | पणघट पर 'डेडर' डहक उठ्या, सरवर रौ हिवड़ो हुळसायौ । |
− | चातक री मधुर 'पिहू' रो सुर ,उणमुक्त गिगन मं सरसायौ ।। | + | चातक री मधुर 'पिहू' रो सुर, उणमुक्त गिगन मं सरसायौ ।। |
− | मुरधर रे धोरां दूर हुयी ,वा दुखड़े री छाया गहरी । | + | मुरधर रे धोरां दूर हुयी, वा दुखड़े री छाया गहरी । |
− | आई सावण री तीज सुखद ,गूंजी गीतां री सुर -लहरी ।। | + | आई सावण री तीज सुखद, गूंजी गीतां री सुर -लहरी ।। |
झूलां रा झुकता "पैंग" देख तरुणा रौ हिवड़ो हरसायौ । | झूलां रा झुकता "पैंग" देख तरुणा रौ हिवड़ो हरसायौ । | ||
− | सुण पड़ी चूड़ियाँ री खण -खण , वौ चीर हवा मं लहरायौ ।। | + | सुण पड़ी चूड़ियाँ री खण -खण, वौ चीर हवा मं लहरायौ ।। |
− | ऐ रजवट रा कर्मठ किसाण ,मेहणत रा रूप जाका नाहर । | + | ऐ रजवट रा कर्मठ किसाण, मेहणत रा रूप जाका नाहर । |
धरती री छाती चीर चीर, ऐ धन उगा लावै बाहर ।। | धरती री छाती चीर चीर, ऐ धन उगा लावै बाहर ।। | ||
− | उण मेहणत रौ फळ देवण नै , सुख दायक चौमासौ आयौ । | + | उण मेहणत रौ फळ देवण नै, सुख दायक चौमासौ आयौ । |
धरती रो कण -कण ह्वे सजीव, मुरधर मं जीवण लहरायौ ।। | धरती रो कण -कण ह्वे सजीव, मुरधर मं जीवण लहरायौ ।। | ||
</poem> | </poem> |
11:11, 12 जनवरी 2011 का अवतरण
धरती रौ कण -कण ह्वे सजीव,मुरधर में जीवण लहरायौ ।
वा आज कल़ायण घिर आयी, बादळ अम्बर मं गहरायो ।।
वा स्याम वरण उतराद दिसा, "भूरोड़े- भुरजां" री छाया !
लख मोर मोद सूँ नाच उठ्यौ, वे पाँख हवा मं छितरायाँ ।।
तिसियारै धोरां पर जळकण, आभै सूँ उतर-उतर आया ।
ज्यूँ ह्वे पुळकित मन मेघ बन्धु, मुरधर पर मोती बरसाया ।।
बौ अट्टहास सुन बादळ रौ, धारोल़ा धरती पर आया ।
धडकै सूँ अम्बर धूज उठ्यौ, कांपी चपल़ा री कृस काया ।।
पण रुक-रुक नै धीरै -धीरै, वां बूंदा रौ कम हुयौ बेग ।
यूं कर अमोल निधि -निछरावळ, यूं बरस-बरस मिट गया मेघ ।।
पणघट पर 'डेडर' डहक उठ्या, सरवर रौ हिवड़ो हुळसायौ ।
चातक री मधुर 'पिहू' रो सुर, उणमुक्त गिगन मं सरसायौ ।।
मुरधर रे धोरां दूर हुयी, वा दुखड़े री छाया गहरी ।
आई सावण री तीज सुखद, गूंजी गीतां री सुर -लहरी ।।
झूलां रा झुकता "पैंग" देख तरुणा रौ हिवड़ो हरसायौ ।
सुण पड़ी चूड़ियाँ री खण -खण, वौ चीर हवा मं लहरायौ ।।
ऐ रजवट रा कर्मठ किसाण, मेहणत रा रूप जाका नाहर ।
धरती री छाती चीर चीर, ऐ धन उगा लावै बाहर ।।
उण मेहणत रौ फळ देवण नै, सुख दायक चौमासौ आयौ ।
धरती रो कण -कण ह्वे सजीव, मुरधर मं जीवण लहरायौ ।।