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"झूठ के पाँव / अभय मौर्य" के अवतरणों में अंतर

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कहते हैं झूठ के पांव नहीं होते।
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जब झूठ बोलने वाला
 
जब झूठ बोलने वाला
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है जाने-माने, लंबे-तगड़े साठ-बरसिया
 
है जाने-माने, लंबे-तगड़े साठ-बरसिया
 
अठारह वर्ष की चुलबुली-सी बच्ची से
 
अठारह वर्ष की चुलबुली-सी बच्ची से
प्रेम लीला में डूबा ‘यूवा’।
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प्रेम लीला में डूबा ‘युवा’।
तो सवाल उठता है कि झुठ में दम है?
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तो सवाल उठता है कि झूठ में दम है ?
जरूर होगा, नहीं तो क्यों नहीं आती है घिन  
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ज़रूर होगा, नहीं तो क्यों नहीं आती है घिन  
लाखों करोड़ों युवाओं के रोल मॉडल की
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लाखों-करोड़ों युवाओं के रोल मॉडल की
उस बात से जो है जन-जन के लबों पर?
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उस बात से जो है जन-जन के लबों पर ?
  
अब इसमें बिचौलियों को घसीटें?
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अब इसमें बिचौलियों को घसीटें ?
दलाल की ‘दरिंदगी भरी’ आंखें भी
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दलाल की ‘दरिंदगी भरी’ आँखें भी
कभी-कभी चौंधियां जाती हैं।
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कभी-कभी चौंधियाँ जाती हैं।
 
पथरा जाती है वे और  
 
पथरा जाती है वे और  
Writing on the wall उन्हें
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राइटिंग ऑन द वॉल उन्हें
बिल्कुल नजर नहीं आती।
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बिल्कुल नज़र नहीं आती ।
 
अहंकारवश दल्लों की तो याददास्त भी धूमिल हो गईः
 
अहंकारवश दल्लों की तो याददास्त भी धूमिल हो गईः
 
भूल गए हैं वे कि क्या हशर हुआ था उनका
 
भूल गए हैं वे कि क्या हशर हुआ था उनका
जिन्होंने चलाया था गोयबल-सा रिकार्ड तोड़ झूठ का अभियानः
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जिन्होंने चलाया था गोयबल-सा रिकार्ड तोड़ झूठ का अभियान :
कि चमक रहा है इंडिया, दमक रहा है भारत।
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कि चमक रहा है इंडिया, दमक रहा है भारत ।
 
दलालों को तो यह भी याद न रहा
 
दलालों को तो यह भी याद न रहा
 
कि लगाई थी उन्होंने सुप्रीमकोर्ट में जबरदस्त गुहार
 
कि लगाई थी उन्होंने सुप्रीमकोर्ट में जबरदस्त गुहार
कि टेलिफोन CD को जगजहिर न होने दें,
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कि टेलिफोन सीडी को जगजहिर न होने दें,
आज खुद बांटते फिरते हैं दूसरों की सीडी सरे आम।
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आज खुद बाँटते फिरते हैं दूसरों की सीडी सरे आम।
 
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11:16, 14 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

कहते हैं झूठ के पाँव नहीं होते ।
पर मुहावरा पलट जाता है तब
जब झूठ बोलने वाला
कोई मामूली बुढ़ऊ न होकर,
है जाने-माने, लंबे-तगड़े साठ-बरसिया
अठारह वर्ष की चुलबुली-सी बच्ची से
प्रेम लीला में डूबा ‘युवा’।
तो सवाल उठता है कि झूठ में दम है ?
ज़रूर होगा, नहीं तो क्यों नहीं आती है घिन
लाखों-करोड़ों युवाओं के रोल मॉडल की
उस बात से जो है जन-जन के लबों पर ?

अब इसमें बिचौलियों को घसीटें ?
दलाल की ‘दरिंदगी भरी’ आँखें भी
कभी-कभी चौंधियाँ जाती हैं।
पथरा जाती है वे और
राइटिंग ऑन द वॉल उन्हें
बिल्कुल नज़र नहीं आती ।
अहंकारवश दल्लों की तो याददास्त भी धूमिल हो गईः
भूल गए हैं वे कि क्या हशर हुआ था उनका
जिन्होंने चलाया था गोयबल-सा रिकार्ड तोड़ झूठ का अभियान :
कि चमक रहा है इंडिया, दमक रहा है भारत ।
दलालों को तो यह भी याद न रहा
कि लगाई थी उन्होंने सुप्रीमकोर्ट में जबरदस्त गुहार
कि टेलिफोन सीडी को जगजहिर न होने दें,
आज खुद बाँटते फिरते हैं दूसरों की सीडी सरे आम।