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11:29, 14 जनवरी 2011 का अवतरण
बादल आए
गोल बाँधकर
नभ में छाए
सूरज का मुँह रहे छिपाए
मैंने देखा :
इन्हें देख गजराज लजाए-
इनके आगे शीश झुकाए-
बोल न पाए
बादल आए
बरखा के घर साजन आए
जल भर लाए
झूम झमाझम बरस अघाए
मैंने देखा;
प्रकृति-पुरुष सब साथ नहाए,
नहा-नहाकर अति हरसाए-
ताप मिटाए
रचनाकाल: २५-०७-१९७६, बाँदा