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"उसकी हँसी / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
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रचनाकाल: ०९-०३-१९७५ | रचनाकाल: ०९-०३-१९७५ | ||
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12:15, 14 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
उसकी हँसी
घुल गई
हिमालय की हीरक हँसी में
और मैं
धूप की भरी
नदी से उठ-उठ कर
निनादित
दौड़ने, घूमने
और
चरने लगा
दिगंत तक फैली वनस्पति को
रचनाकाल: ०९-०३-१९७५