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"सामने उसके कभी उसकी सताइश नहीं की / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
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सामने उसके कभी उसकी सताइश नहीं की। | सामने उसके कभी उसकी सताइश नहीं की। | ||
दिल ने चाहा भी मगर होंटों ने जुंबिश नहीं की॥ | दिल ने चाहा भी मगर होंटों ने जुंबिश नहीं की॥ | ||
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जिस क़दर उससे त’अल्लुक़ था चले जाता है, | जिस क़दर उससे त’अल्लुक़ था चले जाता है, | ||
उसका क्या रंज के जिसकी कभी ख़्वाहिश नहीं की॥ | उसका क्या रंज के जिसकी कभी ख़्वाहिश नहीं की॥ | ||
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ये भी क्या कम है के दोनों का भरम क़ायम है, | ये भी क्या कम है के दोनों का भरम क़ायम है, | ||
उसने बख़्शिश नहीं की हमने गुज़ारिश नहीं की॥ | उसने बख़्शिश नहीं की हमने गुज़ारिश नहीं की॥ | ||
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हम के दुख ओढ के ख़िल्वत में पड़े रहते हैं, | हम के दुख ओढ के ख़िल्वत में पड़े रहते हैं, | ||
हमने बाज़ार में ज़ख़्मों की नुमाइश नहीं की॥ | हमने बाज़ार में ज़ख़्मों की नुमाइश नहीं की॥ | ||
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ऐ मेरे अब्रे करम देख ये वीरानए-जाँ, | ऐ मेरे अब्रे करम देख ये वीरानए-जाँ, | ||
क्या किसी दश्त पे तूने कभी बारिश नहीं की॥ | क्या किसी दश्त पे तूने कभी बारिश नहीं की॥ | ||
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वो हमें भूल गया हो तो अजब क्या है फ़राज़, | वो हमें भूल गया हो तो अजब क्या है फ़राज़, | ||
हम ने भी मेल-मुलाक़ात की कोशिश नहीं की॥ | हम ने भी मेल-मुलाक़ात की कोशिश नहीं की॥ | ||
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00:46, 15 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
सामने उसके कभी उसकी सताइश नहीं की।
दिल ने चाहा भी मगर होंटों ने जुंबिश नहीं की॥
जिस क़दर उससे त’अल्लुक़ था चले जाता है,
उसका क्या रंज के जिसकी कभी ख़्वाहिश नहीं की॥
ये भी क्या कम है के दोनों का भरम क़ायम है,
उसने बख़्शिश नहीं की हमने गुज़ारिश नहीं की॥
हम के दुख ओढ के ख़िल्वत में पड़े रहते हैं,
हमने बाज़ार में ज़ख़्मों की नुमाइश नहीं की॥
ऐ मेरे अब्रे करम देख ये वीरानए-जाँ,
क्या किसी दश्त पे तूने कभी बारिश नहीं की॥
वो हमें भूल गया हो तो अजब क्या है फ़राज़,
हम ने भी मेल-मुलाक़ात की कोशिश नहीं की॥