भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"लाठी में गुण बहुत हैं / गिरिधर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गिरिधर }} Category:कुण्डलियाँ <poem> लाठी में हैं गुण बह…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
20:28, 15 जनवरी 2011 का अवतरण
लाठी में हैं गुण बहुत , सदा रखिये संग ।
गहरि नदी, नाली जहाँ , तहाँ बचावै अंग ।।
तहाँ बचावै अंग , झपटि कुत्ता कहँ मारे ।
दुश्मन दावागीर होय , तिनहूँ को झारै ।।
कह गिरिधर कविराय , सुनो हे दूर के बाठी ।
सब हथियार छाँडि , हाथ महँ लीजै लाठी ।।