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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : नये साल की पहली सुबह<br>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : शीत लहर<br>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[नीलाभ]]</td>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[विजेन्द्र]]</td>
 
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नये साल की पहली सुबह तुम्हें क्या दूं मैं ?
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शीत लहर चलती है पूरे उत्तर भारत में
एक फूल अमन के लिए,
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ठिठुर रहे जन-- जिनके वसन नहीं हैं तन पर
एक बन्दूक आज़ादी के लिए,
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बंदी हैं अपने कालचक्र में, फिर भी वे तन कर
एक किताब संग-साथ के लिए ?
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खड़े रहे अपने ही बल पर, विचलित आरत में
तुम्हारी आंखों के लिए नयी चमक ?
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तुम्हारे ख़ून के लिए नयी गरमी,
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तुम्हरे प्रेम के लिए नयी नरमी,
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दिल के लिए नयी आशा, संघर्ष के लिए नयी भाषा ?
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नये वर्ष में दूर हों ग़म,
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नये वर्ष में मिटें सितम,
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नये वर्ष में दुख हों कम,
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सिर झुकें नहीं, बांहें थकें नहीं,
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टूटें सभी बेड़ियां, मिले नया दम ।
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होते हैं, रहते सावधान जीवन जीना है
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उनको अपने से ही, ऐसी व्याकुलता जगती
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है मन में, कहाँ खड़े हों पल भर धरती तपती
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है, जाड़े से भी बहतेरे मरते हैं, पीना है
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अमृत जल-- ऐसा सौभाग्य कहाँ मिलता है
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भद्रलोक को सुविधाएँ हैं सारी, कहाँ सताता
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पाला उनको, दाता उनका है, शास्त्र बताता
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है-- खरपतवारों के मध्य फूल कहाँ खिलता है ।
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फिर हुई घोषणा गलन अभी और बढ़ेगी
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हड्डी-पसली टूटेगी निर्मम खाल कढ़ेगी ।
 
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13:19, 17 जनवरी 2011 का अवतरण

Lotus-48x48.png  सप्ताह की कविता   शीर्षक : शीत लहर
  रचनाकार: विजेन्द्र
शीत लहर चलती है पूरे उत्तर भारत में
ठिठुर रहे जन-- जिनके वसन नहीं हैं तन पर
बंदी हैं अपने कालचक्र में, फिर भी वे तन कर
खड़े रहे अपने ही बल पर, विचलित आरत में

होते हैं, रहते सावधान जीवन जीना है
उनको अपने से ही, ऐसी व्याकुलता जगती
है मन में, कहाँ खड़े हों पल भर धरती तपती
है, जाड़े से भी बहतेरे मरते हैं, पीना है

अमृत जल-- ऐसा सौभाग्य कहाँ मिलता है
भद्रलोक को सुविधाएँ हैं सारी, कहाँ सताता
पाला उनको, दाता उनका है, शास्त्र बताता
है-- खरपतवारों के मध्य फूल कहाँ खिलता है ।

फिर हुई घोषणा गलन अभी और बढ़ेगी
हड्डी-पसली टूटेगी निर्मम खाल कढ़ेगी ।