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"धवल, यशस्वी / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

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18:00, 21 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

धवल,
यशस्वी,
कांतिकाय तुम,
शरद-पूर्णिमा के आत्मज से,
पुलक-प्यार के पंख पसार,
उड़ आए
मेरे आँगन में
बहुत दिनों के बाद!

अरे कबूतर!
मुग्ध हुआ मैं
तुम्हें देखकर,
भूल गया अब सब कुछ अपना।

एक हुआ मैं तुमसे,
तुम मेरे-
मैं हुआ तुम्हारा!

करो करो जी, खूब गुटरगूँ,
मैं भी करूँ गुटरगूँ
बिना दाँत के मुँह से।

यही गुटरगूँ
प्राणवंत अनुरक्ति है
अर्थवंत अभिव्यक्ति है।

रचनाकाल: २४-०१-१९९२