भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"धवल, यशस्वी / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=खुली आँखें खुले डैने / …) |
छो ("धवल, यशस्वी / केदारनाथ अग्रवाल" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite))) |
(कोई अंतर नहीं)
|
18:00, 21 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
धवल,
यशस्वी,
कांतिकाय तुम,
शरद-पूर्णिमा के आत्मज से,
पुलक-प्यार के पंख पसार,
उड़ आए
मेरे आँगन में
बहुत दिनों के बाद!
अरे कबूतर!
मुग्ध हुआ मैं
तुम्हें देखकर,
भूल गया अब सब कुछ अपना।
एक हुआ मैं तुमसे,
तुम मेरे-
मैं हुआ तुम्हारा!
करो करो जी, खूब गुटरगूँ,
मैं भी करूँ गुटरगूँ
बिना दाँत के मुँह से।
यही गुटरगूँ
प्राणवंत अनुरक्ति है
अर्थवंत अभिव्यक्ति है।
रचनाकाल: २४-०१-१९९२