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"जन्म-मरण का होना / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

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जन्म-मरण का ‘होना’ और ‘न होना’
 
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यही प्रकृति का अटल नियम है।
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देश काल भी इसी नियम के
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अंतर्गत है।
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गत से आगत-
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आगत से आगम होता है;
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यही-यही क्रम फिर-फिर चलता;
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आगम से आगे का आगम
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इसी तरह से
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होता और न होता
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कभी न इससे बचता।
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नित-नित नूतन विकसित होता,
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यह विकास भी विगलित होता,
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विगलित होकर
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प्रचलित होता।
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फिर-फिर परिवर्तन
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प्रत्यावर्तन कभी न होता।
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कभी न होगा ‘शून्य’ ‘शून्य’ ही
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सदा-सर्वदा
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भरा रहेगा
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सृष्टि-सृष्टि से।
  
  
 
रचनाकाल: ११-१-१९९२
 
रचनाकाल: ११-१-१९९२
 
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18:16, 21 जनवरी 2011 का अवतरण

जन्म-मरण का ‘होना’ और ‘न होना’
यही प्रकृति का अटल नियम है।
देश काल भी इसी नियम के
अंतर्गत है।
गत से आगत-
आगत से आगम होता है;
यही-यही क्रम फिर-फिर चलता;
आगम से आगे का आगम
इसी तरह से
होता और न होता
कभी न इससे बचता।

नित-नित नूतन विकसित होता,
यह विकास भी विगलित होता,
विगलित होकर
रूप बदलकर
प्रचलित होता।

परिवर्तन से परिवर्तन-
फिर-फिर परिवर्तन
होता,
प्रत्यावर्तन कभी न होता।

कभी न होगा ‘शून्य’ ‘शून्य’ ही
सदा-सर्वदा
भरा रहेगा
सृष्टि-सृष्टि से।


रचनाकाल: ११-१-१९९२