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12:00, 22 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
पेड़ की जिन शाखाओं ने
सौंप दिए सबसे पहले
अपने कंधे, हवा में उठी कुल्हाड़ी को
वहीं से उगीं मौसम की सबसे हरी पत्तियाँ
पत्थर के जिन टुकड़ों ने
तराशा सबसे पहले, एक-दूसरे को
वहीं से पैदा हुई सृष्टि की सबसे पवित्र आग
सबसे ज़्यादा पकीं जो ईंटे
भट्ठियों में देर तक
उन्हीं की नींव पर उठीं
दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत इमारतें
दर्द में नहा कर पाई जिन आवाज़ों ने खनक
उन्हीं आवाज़ों ने गाए दुनिया के सबसे मधुर गीत
मौसम की सबसे हरी पत्तियों की क़सम
सृष्टि की सबसे पवित्र आग की क़सम
दुनिया कि सबसे मज़बूत इमारतों की क़सम
दुनिया के सबसे मधुर गीत की क़सम
सबसे ज़्यादा लहूलुहान हुए जो अन्तःकरण,
वहीं से, हाँ वहीं से ,प्रकट हुईं
समय की सबसे ख़ूबसूरत कविताएँ ।