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"प्रिय प्रवास / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’" के अवतरणों में अंतर

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छो (पवन - दूतिका)
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बैठी खिन्ना यक दिवस वे गेह में थीं अकेली ।
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आके आँसू दृग-युगल में थें धरा को भिगोते ।।
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आई धीरे इस सदन में  पुष्प-सद्गंध  को  ले ।
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प्रातः वाली सुपवन इसी काल वातायनों से ।।१।।
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11:32, 27 जनवरी 2011 का अवतरण

प्रिय प्रवास
Priyapravas.jpg
रचनाकार अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
प्रकाशक
वर्ष
भाषा हिन्दी
विषय कविताएँ
विधा महाकाव्य
पृष्ठ
ISBN
विविध इस ग्रंथ को खड़ीबोली का प्रथम महाकाव्य होने का गौरव प्राप्त है।
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।