भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नरोत्तमदास / परिचय

36 bytes removed, 08:39, 28 जनवरी 2011
नरोत्तमदास के जीवन के विषय में कुछ विशेष ज्ञात नहीं है। शिवसिंह 'सरोज से पता चलता है कि ये बाडी नामक स्थान के रहने वाले कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। इनके ग्रंथों में एक 'सुदामा चरित ही उपलब्ध है, यद्यपि कहा जाता है कि इन्होंने 'ध्रुव चरित तथा 'विचारमाला ग्रंथ भी रचे थे। सुदामा चरित अत्यंत सरस, सरल, स्वाभाविक एवं भक्ति-भाव परिपूर्ण एक रोचक खंड-काव्य है। इसी ग्रंथ के बल पर नरोत्तमदास अक्षय कीर्ति के भागी हुए हैं।
‘‘कविताकोश’’ हेतु'''महाकवि नरोत्तमदास का कृतित्व'''
महाकवि नरोत्तमदास का कृतित्वआलेख :- अशोक कुमार शुक्ला
आलेखःहिन्दी साहित्य में ऐसे लोग विरले ही हैं जिन्होंने मात्र एक या दो रचनाओं के आधार पर हिन्दी साहित्य में अपना स्थान सुनिश्चित किया है। एक ऐसे ही कवि हैं, उत्तर प्रदेश के सीतापुर जनपद में जन्मे कवि नरोत्तमदास, जिनका एकमात्र खण्ड-अशोक कुमार शुक्लाकाव्य ‘सुदामा चरित’ (ब्रजभाषा में) मिलता है जो हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर मानी जाती है ।
हिन्दी साहित्य पं0 गणेश बिहारी मिश्र की ‘मिश्रबंधु विनोद’ के अनुसार 1900 की खोज में ऐसे लोग विरले ही हैं जिन्होंने मात्र एक या दो इनकी कुछ अन्य रचनाओं ‘विचार माला’ तथा ‘ध्रुव-चरित’ और ‘नाम-संकीर्तन’ के आधार पर हिन्दी साहित्य संबंध में अपना स्थान सुनिश्चित किया है। ऐक ऐसे ही कवि हुये भी जानकारियाँ मिलते हैं उत्तर प्रदेश के सीतापुर जनपद परन्तु इस संबंध में जन्में कवि नरोत्तमदास, जिनका एकमात्र खण्ड-काब्य ‘सुदामा चरित’ (ब्रजभाषा में) मिलता है जो हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर मानी जाती अब तक प्रामाणिकता का अभाव है।
पं0 गणेश बिहारी मिश्र की ‘मिश्रबंधु विनोद’ के अनुसार 1900 नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, की एक खोज रिपोर्ट में इनकी कुछ अन्य रचनाओं ‘विचार माला’ तथा ‘ध्रुव -चरित’ और भी ‘विचारमाला’ व ‘नाम- संकीर्तन’ के संबंध में भी उदाहरण मिलते हैं परन्तु इस संबंध में अब तक प्रमाणिकता की अनुपलब्धता का अभाव वर्णन है। ‘ध्रुव-चरित’ आंशिक रूप से उपलब्ध है जिसके 28 छंद ‘रसवती’ पत्रिका में 1968 अंक में प्रकाशित हुए।
नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, सिधौली पत्रकार संघ के अध्यक्ष श्री हरिदयाल अवस्थी ने नरोत्तमदास की एक खोज रिपोर्ट में हस्तलिखित ‘सुदामा चरित’ के 9 पृष्ठ प्राप्त करने का भी ‘विचारमाला’ व ‘नाम-संकीर्तन’ दावा किया है परन्तु यह हस्तलिखित कृति लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति के पास काफी समय तक प्रामाणिकता की अनुपलब्धता का वर्णन है। ‘ध्रुव-चरित’ आंशिक रूप से उपलब्ध है जिसके 28 छंद ‘रसवती’ पत्रिका में 1968 अंक में प्रकाशित हुये। परीक्षण के लिए पडी रही, परन्तु निर्णय न हो सका।
सिधौली पत्रकार संघ के अध्यक्ष श्री हरिदयाल अवस्थी ने नरोत्तमदास ‘शिव सिंह सरोज’ में सम्वत् 1602 तक इनके जीवित होने की हस्तलिखित ‘सुदामा चरित’ बात कही गई है। इन पंक्तियों के 9 पृष्ठ प्राप्त करने लेखक के आदरणीय स्वर्गीय पितामह तथा आदरणीय पिताश्री को बाडी के सन्निकट स्थित ग्राम अल्लीपुर का भी दावा किया है परन्तु यह हस्तलिखित कृति लखनऊ विश्वविद्यालय मूल निवासी होने के पुर्व कुलपति कारण इस महान कवि के जन्मस्थल पर अंग्रेज़ों के पास काफी समय से प्रमाणिकता की परीक्षा चलने वाले एकमात्र विद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने का सौभाग्य मिला है जिससे वहाँ प्रचलित जनश्रुतियों को निकटता से सुनने का अवसर प्राप्त हुआ है। वहां प्रचलित जनश्रुतियों के लिये पडी रही परन्तु निर्णय न हो सका।आधार पर यह ज्ञात हुआ है कि ये कान्यकुब्ज ब्राहमण थे।
‘शिव सिंह सरोज’ में सम्वत् 1602 तक इनके जीवित होने की बात कही गयी है। इन पंक्तियों के लेखक के आदरणीय स्वर्गीय पितामह तथा आदरणीय पिताश्री को बाडी के सन्निकट स्थित ग्राम अल्लीपुर का मूल निवासी होने के कारण इस महान कवि के जन्मस्थल पर अंग्रेजों के समय से चलने वाले एकमात्र विद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने का सौभाग्य मिला है जिससे वहां प्रचलित जनश्रुतियों को निकटता से सुनने का अवसर प्राप्त हुआ है। वहां प्रचलित जनश्रुतियों के आधार पर यह ज्ञात हुआ है कि ये कान्यकुब्ज ब्राहमण थे।  इसके अतिरिक्त इनके संबंध में अन्य प्रमाणिक अभिलेखों में ‘जार्ज प्रियर्सन’ ग्रियर्सन’ का अध्ययन है, जिसमें उन्होनेे उन्होंने महाकवि का जन्मकाल सम्वत् 1610 माना है। वस्तुतः इनके जन्मकाल के सम्बन्ध में अनेक विद्वानों ने अपने -अपने मत प्रगट किये हैें किए हैं परन्तु ‘शिव सिंह सेंगर’ व ‘जार्ज प्रियर्सन’ ग्रियर्सन’ के मत अधिक समीचीन व प्रमाणित प्रतीत होते है जिसके आधार पर ‘सुदामा चरित’ का रचना काल सम्वत् 1582 में न होकर सन् 1582 अर्थात सम्वत् 1636 होता है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने ‘हिन्दी साहित्य’ में नरोत्तमदास के जन्म का उल्लेख सम्वत् 1545 में होना स्वीकार किया है। इस प्रकार अनेक विद्वानों के मतो मतों के आधार पर इनके जीवनकाल का निर्धारण उपलब्ध साक्ष्यों के आलोक में 1493 ई0 से 1582 ई0 किया गया है।
‘सुदामा चरित’ के संबंध में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने कहा हैः-
‘यद्यपि यह छोटा है पर इसकी रचना वहुत बहुत सरस और हृदय ग्राहिणी हृदयग्राहिणी है और कवि की भावुकता का परिचय देती है भाषा भी बहुत परिमार्जित है और व्यवस्थित है बहुतेरे कवियों क समान अरबी के शब्द और वाक्य इसमें नहीं है।’
डा0 नगेन्द्र ने अपने ग्रथ ‘रीतिकालीन कवियों की की सामान्य विशेषतायेंविशेषताएँ, खण्ड -2, अध्याय- 4’ में सबसे पहले ‘सवैयों’ का प्रयोेग प्रयोग करने वाले कवियों की श्रेणी में नोत्तमदास को रखा हें ‘कवित्त’ (धनाक्षरीघनाक्षरी) का प्रयोग भी सर्वप्रथम नरोत्तमदास ने ही किया था। यह विधा अकबर के समकालीन अन्य कवियों ने अपनायी थी।थी ।
डा0 रामकुमार वर्मा ने नरोत्तमदास के काब्य काव्य के संदर्भ में लिखा हैः-‘कथा संगठन,’ ‘नाटकीयता’, ‘विधान , भाव , भाषा , द्वन्द्व’ आदि सभी दृष्टियों से नरोत्तमदास कृत सुदामा चरित श्रेष्ठ रचना है।’है ।’
कवि का कृतित्व इस प्रकार है।
1-सुदामा चरित, खण्ड काब्य (ब्रजभाषा में संपादित संकलन)
2-‘ध्रुव -चरित’, 28 छंद ‘रसवती’ पत्रिका में 1968 अंक में प्रकाशित
3-‘नाम- संकीर्तन’ , अब तक अप्राप्त, (प्रमाणिकता प्रामाणिकता का अभाव)
4-‘विचारमाला’ , अब तक अप्राप्त, (प्रमाणिकता प्रामाणिकता का अभाव)
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,240
edits