"दादाजी कहते थे / गोरधनसिंह शेखावत" के अवतरणों में अंतर
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोरधनसिंह शेखावत |संग्रह= }} [[Category:]] {{KKCatKavita}}<poem>दादा…) |
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | |||
{{KKCatKavita}}<poem>दादाजी कहते थे- | {{KKCatKavita}}<poem>दादाजी कहते थे- | ||
“थोडा रुको, | “थोडा रुको, |
05:57, 29 जनवरी 2011 का अवतरण
दादाजी कहते थे-
“थोडा रुको,
रुको बच्चों !
समय आयेगा
और उदित होगा
सोने का सूरज
इसी जंगल में
तब तक तुम
खड़े रहो- धैर्य के साथ ।”
एक दिन
जंगल में
आंधी के बवंडर से
अंधेरे ने पंख फैला दिये
कुछ नहीं दिखता
और न ही मन में सजगता आई
चारों तरफ़ सुनाई दी
मनुष्यों की भयंकर आवाजें
तरह-तरह के मनुष्य
और तरह-तरह की बोलियां
फिर चिल्लाना
और लूट-खसोट
तलवार से काट रहा
एक मनुष्य
उन सभी को ।
बंदूकों की आवाजों से
कांपती रही रात
जगते रहे पशु-पक्षी
थर-थर्राते करते
सुबह का इतंजार
अजीब चित्र है यह
छिप गया पाहड़
ध्वस्त हो गए जंगल
टूट गया भ्रम
मनुष्यता के पहरेदारों का
दादाजी कहते थे-
“थोडा रुको,
रुको बच्चों !
समय आयेगा
और उदित होगा
सोने का सूरज
इसी जंगल में
तब तक तुम
खड़े रहो- धैर्य के साथ ।”
अनुवाद : नीरज दइया