"भागमती / मख़दूम मोहिउद्दीन" के अवतरणों में अंतर
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'''भागमती'''<ref>गोलकुण्डा के बादशाह अबुल हसन की एक आदिवासी प्रेमिका,</ref> | '''भागमती'''<ref>गोलकुण्डा के बादशाह अबुल हसन की एक आदिवासी प्रेमिका,</ref> | ||
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घन की घनघोर घटाएँ हैं न हुन<ref>सोना</ref> के बादल | घन की घनघोर घटाएँ हैं न हुन<ref>सोना</ref> के बादल | ||
सोने-चाँदी के गली-कूचे न हीरों के महल । | सोने-चाँदी के गली-कूचे न हीरों के महल । | ||
− | आज भी | + | आज भी जिस्म के अम्बार है बाज़ारों में |
ख़्वाज-ए-शहर<ref>शहर के अमीर लोग</ref> है यूसुफ़<ref>युसूफ़ पैग़म्बर थे, जिन्हें मिस्र के बाज़ार में बेचने के लिए लाया गया था और जुलेखा उनके सौन्दर्य पर मोहित हो गई थी ।</ref> के ख़रीदारों में । | ख़्वाज-ए-शहर<ref>शहर के अमीर लोग</ref> है यूसुफ़<ref>युसूफ़ पैग़म्बर थे, जिन्हें मिस्र के बाज़ार में बेचने के लिए लाया गया था और जुलेखा उनके सौन्दर्य पर मोहित हो गई थी ।</ref> के ख़रीदारों में । | ||
18:16, 30 जनवरी 2011 का अवतरण
भागमती<ref>गोलकुण्डा के बादशाह अबुल हसन की एक आदिवासी प्रेमिका,</ref>
प्यार से आँख भर आती है कँवल खिलते हैं
जब कभी लब पे तेरा नामे-वफ़ा आता है ।
दश्त<ref>जंगल</ref> की रात में बारात यहीं से निकली
राग की रंग की बरसात यहीं से निकली ।
इंक़लाबात की हर बात यहीं से निकली
गुनगुनाती हुई हर रात यहीं से निकली ।
घन की घनघोर घटाएँ हैं न हुन<ref>सोना</ref> के बादल
सोने-चाँदी के गली-कूचे न हीरों के महल ।
आज भी जिस्म के अम्बार है बाज़ारों में
ख़्वाज-ए-शहर<ref>शहर के अमीर लोग</ref> है यूसुफ़<ref>युसूफ़ पैग़म्बर थे, जिन्हें मिस्र के बाज़ार में बेचने के लिए लाया गया था और जुलेखा उनके सौन्दर्य पर मोहित हो गई थी ।</ref> के ख़रीदारों में ।
शहर बाक़ी है मुहब्बत का निशाँ बाक़ी है
दिलबरी<ref>प्रेम</ref> बाक़ी है दिलदारि-ए-जाँ<ref>प्रेम करने वाली आत्माएँ</ref> बाक़ी है ।
सरे फ़ेहरिस्त्ते<ref>सूची में सबसे ऊपर</ref> निगाराने जहाँ<ref>प्रेमिकाओं की दुनिया</ref> बाक़ी है
तू नहीं है तेरी चश्मे निगरा<ref>देखभाल करने वाली</ref> बाक़ी है ।