"यह दंतुरित मुसकान / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर
(New page: {{KKGlobal}} रचनाकार: नागार्जुन Category:कविताएँ Category:नागार्जुन ~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~ तु...) |
|||
पंक्ति 25: | पंक्ति 25: | ||
छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल | छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल | ||
− | + | बाँस था कि बबूल? | |
तुम मुझे पाए नहीं पहचान? | तुम मुझे पाए नहीं पहचान? | ||
पंक्ति 33: | पंक्ति 33: | ||
थक गए हो? | थक गए हो? | ||
− | + | आँख लूँ मैं फेर? | |
क्या हुया यदि हो सके परिचित न पहली बार? | क्या हुया यदि हो सके परिचित न पहली बार? | ||
− | यदि तुम्हारी | + | यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होगी आज |
मैं न सकता देख | मैं न सकता देख | ||
पंक्ति 45: | पंक्ति 45: | ||
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान | तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान | ||
− | धन्य तुम, | + | धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य! |
चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य! | चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य! | ||
पंक्ति 51: | पंक्ति 51: | ||
इस अतिथि से प्रिय क्या रहा तुम्हारा संपर्क | इस अतिथि से प्रिय क्या रहा तुम्हारा संपर्क | ||
− | + | उँगलियाँ माँ की कराती रही मधुपर्क | |
देखते तुम इधर कनखी मार | देखते तुम इधर कनखी मार | ||
− | और होतीं जब कि | + | और होतीं जब कि आँखे चार |
तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान | तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान | ||
लगती बड़ी ही छविमान! | लगती बड़ी ही छविमान! |
01:22, 11 जून 2007 का अवतरण
रचनाकार: नागार्जुन
~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूली-धूसर तुम्हारे ये गात...
छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारी ही प्राण,
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण
छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल
बाँस था कि बबूल?
तुम मुझे पाए नहीं पहचान?
देखते ही रहोगे अनिमेष!
थक गए हो?
आँख लूँ मैं फेर?
क्या हुया यदि हो सके परिचित न पहली बार?
यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होगी आज
मैं न सकता देख
मैं न पाता जान
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य!
चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य!
इस अतिथि से प्रिय क्या रहा तुम्हारा संपर्क
उँगलियाँ माँ की कराती रही मधुपर्क
देखते तुम इधर कनखी मार
और होतीं जब कि आँखे चार
तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान
लगती बड़ी ही छविमान!