"बारूद और बच्चे / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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ममता से वंचित-शापित | ममता से वंचित-शापित | ||
माँओं के ख्यालों में | माँओं के ख्यालों में | ||
− | पलते- | + | पलते-बढ़ते बच्चे |
− | लाड़-दुलार के काबिल नहीं रह पाएंगे | + | लाड़-दुलार के काबिल नहीं रह पाएंगे, |
− | माँओं की स्नेह-सनी फटकार | + | माँओं की स्नेह-सनी फटकार सुनने को |
चुनिन्दा शिष्टजन अतीत की खिड़कियों से | चुनिन्दा शिष्टजन अतीत की खिड़कियों से | ||
दूर धूमिल होते मार्गों पर टकटकी लगाए | दूर धूमिल होते मार्गों पर टकटकी लगाए | ||
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जिसकी अंगुलियाँ थामे कोई आदर्श बच्चा | जिसकी अंगुलियाँ थामे कोई आदर्श बच्चा | ||
कभी-कभार नज़र आ ही जाएगा | कभी-कभार नज़र आ ही जाएगा | ||
− | + | डरा-सहमा सा उसके सबक सुनाते हुए | |
निर्दयी विकास के भारी-भरकम कदमों से | निर्दयी विकास के भारी-भरकम कदमों से | ||
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प्राचीन इबारतों में | प्राचीन इबारतों में | ||
− | मुश्किल से कोई | + | मुश्किल से कोई खरगोशी बच्चा |
मिसाल के तौर पर | मिसाल के तौर पर | ||
बरामद किया जा सकेगा | बरामद किया जा सकेगा | ||
मौजूदा नौनिहालों के लिए | मौजूदा नौनिहालों के लिए | ||
जो चुइंगम चुबलाते हुए | जो चुइंगम चुबलाते हुए | ||
− | और अपने | + | और अपने पिता के चोर जेबों से |
रूपए झटक कर अंकल चिप्स खाते हुए | रूपए झटक कर अंकल चिप्स खाते हुए | ||
मरदाने अट्टहास से | मरदाने अट्टहास से | ||
पंक्ति 43: | पंक्ति 43: | ||
मैं उन अपहृत बच्चों की बरामदगी के लिए | मैं उन अपहृत बच्चों की बरामदगी के लिए | ||
− | भविष्य के | + | भविष्य के राजमार्गों पर भटक रहा हूँ |
एक कर्त्तव्यनिष्ठ थानेदार की तलाश में | एक कर्त्तव्यनिष्ठ थानेदार की तलाश में | ||
जो ढूंढ लाएगा ऎसी माँएँ | जो ढूंढ लाएगा ऎसी माँएँ | ||
जो प्रसवित करेंगी | जो प्रसवित करेंगी | ||
− | + | मलयवाहिनी भोर की तरह | |
शीतल और सुवासित बच्चे | शीतल और सुवासित बच्चे | ||
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मैं उस निर्मम माँ से बेहद खफा हूँ | मैं उस निर्मम माँ से बेहद खफा हूँ | ||
जिसने अपने अनखिले पुष्प को | जिसने अपने अनखिले पुष्प को | ||
− | हत्यारी धाराओं के हवाले कर दिया था | + | हत्यारी धाराओं के हवाले कर दिया था, |
− | + | धाराओं ने पुष्प-कलि को अपने आँचल में समेट | |
− | धाराओं ने पुष्प-कलि को अपने आँचल में | + | |
इतिहास के सुपुर्द कर दिया | इतिहास के सुपुर्द कर दिया | ||
जिसके खुरदुरे मैदान में फैलकर | जिसके खुरदुरे मैदान में फैलकर | ||
− | वह | + | वह उद्धृत कर गया एक मुहावरा |
दानवीर महानायक कर्ण का | दानवीर महानायक कर्ण का | ||
− | ऎसी घटनाओं के | + | ऎसी घटनाओं के मौजूदा चलन में |
बदचलन कुमाताएँ विकृत करती जा रही हैं | बदचलन कुमाताएँ विकृत करती जा रही हैं | ||
ममत्त्व का चेहरा | ममत्त्व का चेहरा | ||
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बारूद में | बारूद में | ||
− | बच्चों के मनचाही ज़द्दोज़हद में | + | बच्चों के बारूद बनाने की मनचाही ज़द्दोज़हद में |
एक लम्बी ऐतिहासिक प्रक्रिया | एक लम्बी ऐतिहासिक प्रक्रिया | ||
सफल प्रयोगों के अंतिम चरण में है | सफल प्रयोगों के अंतिम चरण में है |
17:08, 31 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
बारूद और बच्चे
ममता से वंचित-शापित
माँओं के ख्यालों में
पलते-बढ़ते बच्चे
लाड़-दुलार के काबिल नहीं रह पाएंगे,
माँओं की स्नेह-सनी फटकार सुनने को
चुनिन्दा शिष्टजन अतीत की खिड़कियों से
दूर धूमिल होते मार्गों पर टकटकी लगाए
खोजते फिरेंगे एक दुर्लभ माँ
जिसकी अंगुलियाँ थामे कोई आदर्श बच्चा
कभी-कभार नज़र आ ही जाएगा
डरा-सहमा सा उसके सबक सुनाते हुए
निर्दयी विकास के भारी-भरकम कदमों से
बचते हुए दुबकता ठिंगना समय
अपने अनुचर अतीत से
नहीं मंगा पाएगा
ओस और दूब की तरह एक बच्चा
जो माँ के मन-आँगन में
फुदकता हुआ
उसमें उठने वाले हिंसक ऊष्ण ज्वार को
अपनी किलकारियों से शांत कर देगा
प्राचीन इबारतों में
मुश्किल से कोई खरगोशी बच्चा
मिसाल के तौर पर
बरामद किया जा सकेगा
मौजूदा नौनिहालों के लिए
जो चुइंगम चुबलाते हुए
और अपने पिता के चोर जेबों से
रूपए झटक कर अंकल चिप्स खाते हुए
मरदाने अट्टहास से
उसे वापस इबारतों में भागकर
छिप जाने को मज़बूर कर देगा
मैं उन अपहृत बच्चों की बरामदगी के लिए
भविष्य के राजमार्गों पर भटक रहा हूँ
एक कर्त्तव्यनिष्ठ थानेदार की तलाश में
जो ढूंढ लाएगा ऎसी माँएँ
जो प्रसवित करेंगी
मलयवाहिनी भोर की तरह
शीतल और सुवासित बच्चे
पुराण की हथेली पर उगी
मैं उस निर्मम माँ से बेहद खफा हूँ
जिसने अपने अनखिले पुष्प को
हत्यारी धाराओं के हवाले कर दिया था,
धाराओं ने पुष्प-कलि को अपने आँचल में समेट
इतिहास के सुपुर्द कर दिया
जिसके खुरदुरे मैदान में फैलकर
वह उद्धृत कर गया एक मुहावरा
दानवीर महानायक कर्ण का
ऎसी घटनाओं के मौजूदा चलन में
बदचलन कुमाताएँ विकृत करती जा रही हैं
ममत्त्व का चेहरा
और कूड़े में निपटाए जाने वाले बच्चों को
तब्दील कर रही हैं
बारूद में
बच्चों के बारूद बनाने की मनचाही ज़द्दोज़हद में
एक लम्बी ऐतिहासिक प्रक्रिया
सफल प्रयोगों के अंतिम चरण में है
सो, बच्चे लोकप्रिय धारणाओं के विपरीत
अपनी विहँसती किलकारियों से
बारूदी विस्फोट कर रहे हैं
भविष्य के अंध कूप में
बारूदी ज़खीरा इकट्ठा कर रहे हैं ।
(वर्तमान साहित्य, सं. कुंवर पाल सिंह, अक्टूबर, 2009)