"आस्थाओं के बीच से: अक्षर / अम्बिका दत्त" के अवतरणों में अंतर
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संगीत की कठिनतम रचनाएँ। | संगीत की कठिनतम रचनाएँ। | ||
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+ | अनचाही/उग आई | ||
+ | खरपतवार के बीच | ||
+ | तुमने मुझे | ||
+ | जब-तब/बेकार | ||
+ | एक बार नहीं/अनेक बार | ||
+ | निरर्थक बोया | ||
+ | बिना सोचे बोते रहे | ||
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+ | मुझे दोष मत दो - | ||
+ | कि मैं उगा नही | ||
+ | मैंने अपनी पूरी ऊर्जा के साथ | ||
+ | जमीन में से उगाया-अपने आप को | ||
+ | सच बोलो ! | ||
+ | सृजन में क्या शब्द सहयोग नहीं है ? | ||
+ | लेकिन अक्षरों की फसल | ||
+ | तुम काट कर घर ला पाए ? | ||
+ | नहीं न ! | ||
+ | इतना पुरूषार्थ तुममें कहां था | ||
+ | नैतिकता, शब्द की नहीं संस्कार की होती है। | ||
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12:53, 1 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
संज्ञाएँ देता रहा
तुम्हारे मनाभावों को
विचारों को
जन्मजात रूग्णताओं को भी
मैं/अभीव्यक्ति के लिए
तुम्हारे जटिल विचारों को
मूर्त रूप देते हुए
कितना-कितना, किलष्ट हुआ मैं
निरन्तर जूझता रहा
तुम्हारी अव्यक्ता पीड़ाओं की भाषा जुटाते
कितनी उत्तेजनाऐं सहीं
तुम्हारी नासमझ/भावुक
संवेदनाओं के बीच/तब
जब तुम सम्प्रेषण की चौकट पर
दस्तक दे रहे थे
बिछाता रहा
मनस से वचन तक के
अनासक्त पठार खण्डों पर
शब्द-शब्द दूब !
रचता रहा
संगीत की कठिनतम रचनाएँ।
लेकिन आस्थाओं की
अनचाही/उग आई
खरपतवार के बीच
तुमने मुझे
जब-तब/बेकार
एक बार नहीं/अनेक बार
निरर्थक बोया
बिना सोचे बोते रहे
मुझे दोष मत दो -
कि मैं उगा नही
मैंने अपनी पूरी ऊर्जा के साथ
जमीन में से उगाया-अपने आप को
सच बोलो !
सृजन में क्या शब्द सहयोग नहीं है ?
लेकिन अक्षरों की फसल
तुम काट कर घर ला पाए ?
नहीं न !
इतना पुरूषार्थ तुममें कहां था
नैतिकता, शब्द की नहीं संस्कार की होती है।