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"सात पंक्तियाँ / मंगलेश डबराल" के अवतरणों में अंतर
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रचनाकार: मंगलेश डबराल
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मुश्किल से हाथ लगी एक सरल पंक्ति
एक दूसरी बेडौल-सी पंक्ति में समा गई
उसने तीसरी जर्जर क़िस्म की पंक्ति को धक्का दिया
इस तरह जटिल-सी लड़खड़ाती चौथी पंक्ति बनी
जो ख़ाली झूलती हुई पाँचवी पंक्ति से उलझी
जिसने छटपटाकर छठी पंक्ति को खोजा जो आधा ही लिखी गई थी
अंतत: सातवीं पंक्ति में गिर पड़ा यह सारा मलबा
(1992 में रचित)