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"सात पंक्तियाँ / मंगलेश डबराल" के अवतरणों में अंतर

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22:38, 29 दिसम्बर 2007 के समय का अवतरण


मुश्किल से हाथ लगी एक सरल पंक्ति

एक दूसरी बेडौल-सी पंक्ति में समा गई

उसने तीसरी जर्जर क़िस्म की पंक्ति को धक्का दिया

इस तरह जटिल-सी लड़खड़ाती चौथी पंक्ति बनी

जो ख़ाली झूलती हुई पाँचवी पंक्ति से उलझी

जिसने छटपटाकर छठी पंक्ति को खोजा जो आधा ही लिखी गई थी

अंतत: सातवीं पंक्ति में गिर पड़ा यह सारा मलबा


(1992 में रचित)