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"एक चिकना मौन / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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19:14, 2 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
एक चिकना मौन
जिस में मुखर-तपती वासनाएँ
दाह खोती
लीन होती हैं ।
उसी में रवहीन
तेरा
गूँजता है छंद :
ऋत विज्ञप्त होता है ।
एक काले घोल की-सी रात
जिस में रूप, प्रतिमा, मूर्त्तियाँ
सब पिघल जातीं
ओट पातीं
एक स्वप्नातीत, रूपातीत
पुनीत
गहरी नींद की ।
उसी में से तू
बढ़ा कर हाथ
सहसा खींच लेता-
गले मिलता है ।