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"इतने गहरे हैं जब जुबानी में / श्याम कश्यप बेचैन" के अवतरणों में अंतर
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सच नहीं बोलते तो क्या होता | सच नहीं बोलते तो क्या होता | ||
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तंगदस्ती ने इस क़दर मारा | तंगदस्ती ने इस क़दर मारा | ||
− | हो ना | + | हो ना पाए जवाँ जवानी में |
आए पानी को बाँधने लेकिन | आए पानी को बाँधने लेकिन | ||
आप भी बह गए रवानी में | आप भी बह गए रवानी में | ||
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16:12, 4 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
इतने गहरे हैं जब जुबानी में
क्यों उतरते नहीं हैं पानी में
ताकि कुछ तो लगे हक़ीकत-सी
और कुछ जोड़िए कहानी में
हमको हरगिज़ समझ नहीं सकते
आप रहते हैं बदगुमानी में
सच नहीं बोलते तो क्या होता
फँस गए हम ग़लतबयानी में
तंगदस्ती ने इस क़दर मारा
हो ना पाए जवाँ जवानी में
आए पानी को बाँधने लेकिन
आप भी बह गए रवानी में