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18:40, 4 फ़रवरी 2011 का अवतरण
उपन्यासों की बानी हो रही है
बहुत लम्बी कहानी हो रही है
बदल जाए न उसका स्वर अचानक
वो जिसकी मेज़बानी हो रही है
बहुत वाचाल लोगों के शहर में
उपेक्षित बेज़ुबानी हो रही है
कली पढ़ ले न छल की देह भाषा
यहाँ तक सावधानी हो रही है
महक को ले उड़े पंछी हवा के
सशंकित रातरानी हो रही है
बदलते साथ मेरे मन का मौसम
अचानक रुत सुहानी हो रही है
कहीं आकाश है उसके सपन में
जो नदिया आसमानी हो रही है