भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आखों में भडकती हैं / एहतराम इस्लाम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एहतराम इस्लाम |संग्रह= है तो है / एहतराम इस्लाम }} …)
 
(कोई अंतर नहीं)

00:13, 5 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण


आखों में भडकती हैं आक्रोश की ज्वालाएं
हं लांघ गए शायद संतोष की सीमाएं

पग पग पे प्रतिस्थित हैं पथ भ्रस्त दुराचारी
इस नक़्शे में हम खुद को किस बिंदु पे दर्शायें

अनुभूति की दुनिया में भूकंप सा आया है
आधार न खो बैठें निष्ठाएं प्रतिष्ठाएं

बासों का घना जंगल कुछ काम न आएगा
हाँ खेल दिखा देंगी कुछ अग्नि शलाकाएँ

सीने से धुँआ उठना कब बांड हुआ कहिये
कहने को बदलती ही रहती हैं व्यवस्थाए

वीरानी बिछा दी है मौसम के बुढापे ने
कुछ गुल न खिला डाले यौवन की निराशाएं

तस्वीर दिखानी है भारत की तो दिखला दो
कुछ तैरती पतवारें कुछ डूबती नौकाएं