भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हम तो ये बात जान के हैरान हैं बहुत / आलोक श्रीवास्तव-१" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-१ |संग्रह=आमीन / आलोक श्रीवास्त…)
 
(कोई अंतर नहीं)

01:41, 5 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण


हम तो ये बात जान के हैरान हैं बहुत
खामोशियों में शोर के तूफ़ान हैं बहुत

बाज़ार जा के खुद का कभी दाम पूछना
तुम जैसे हर दूकान में सामान हैं बहुत

अच्छा सा कामकाज खुली आँख से चुनो
ख़्वाबों के लेन देन में नुक्सान है बहुत

आवाज़ बर्तनों की घरों में दबी रहे
बाहर जो सुनने वाके हैं शैतान हैं बहुत

खुशहाल घर को जाने नज़र किसकी लग गई
हम लोग कुछ दिनों से परेशान हैं बहुत

आवाज़ साथ है न बदन का कहीं पता
अब के सफर में रास्ते सूनसान हैं बहुत