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"दु:ख की बात / लीलाधर जगूड़ी" के अवतरणों में अंतर

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निरर्थकताओं को सार्थकताओं  में बदलने के लिए
 
निरर्थकताओं को सार्थकताओं  में बदलने के लिए
 
 
हम संघर्ष करते हैं
 
हम संघर्ष करते हैं
 
 
बदहालियों को ख़ुशहालियों में बदलने  के लिए
 
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हम संघर्ष करते हैं
 
हम संघर्ष करते हैं
 
 
क्योंकि कमियाँ जब अभाव बन जाती हैं
 
क्योंकि कमियाँ जब अभाव बन जाती हैं
 
 
तो वे बीमारियाँ बन जाती हैं  
 
तो वे बीमारियाँ बन जाती हैं  
 
  
 
कोई डाक्टर नहीं बताता कि क्या—क्या अभाव है किसी के जीवन में
 
कोई डाक्टर नहीं बताता कि क्या—क्या अभाव है किसी के जीवन में
 
 
वे  सिर्फ़ उन जगहों के बारे में पूछते हैं
 
वे  सिर्फ़ उन जगहों के बारे में पूछते हैं
 
 
जो दुख रही होती हैं
 
जो दुख रही होती हैं
 
 
या जानलेवा दर्द उठा रही होती हैं  
 
या जानलेवा दर्द उठा रही होती हैं  
 
  
 
मौत से फिर कभी हम बाद में मरते हैं
 
मौत से फिर कभी हम बाद में मरते हैं
 
 
और फिर मौत को ही जिम्मेदार ठहराते हैं अपनी मौत का  
 
और फिर मौत को ही जिम्मेदार ठहराते हैं अपनी मौत का  
 
  
 
आज शरीर विज्ञान में हो रहे अनुसंधान की एक ख़बर पढ़ी
 
आज शरीर विज्ञान में हो रहे अनुसंधान की एक ख़बर पढ़ी
 
 
कि उस दवा के सेवन से अब आदमी बूढ़ा नहीं होगा
 
कि उस दवा के सेवन से अब आदमी बूढ़ा नहीं होगा
 
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यह कितने दु:ख की बात है कि आदमी जवान रहेगा और मर जाएगा
यह कितने दु:ख की बात है कि आदमी जवान रहेगा और मर जाएगा.
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16:24, 5 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

निरर्थकताओं को सार्थकताओं में बदलने के लिए
हम संघर्ष करते हैं
बदहालियों को ख़ुशहालियों में बदलने के लिए
हम संघर्ष करते हैं
क्योंकि कमियाँ जब अभाव बन जाती हैं
तो वे बीमारियाँ बन जाती हैं

कोई डाक्टर नहीं बताता कि क्या—क्या अभाव है किसी के जीवन में
वे सिर्फ़ उन जगहों के बारे में पूछते हैं
जो दुख रही होती हैं
या जानलेवा दर्द उठा रही होती हैं

मौत से फिर कभी हम बाद में मरते हैं
और फिर मौत को ही जिम्मेदार ठहराते हैं अपनी मौत का

आज शरीर विज्ञान में हो रहे अनुसंधान की एक ख़बर पढ़ी
कि उस दवा के सेवन से अब आदमी बूढ़ा नहीं होगा
यह कितने दु:ख की बात है कि आदमी जवान रहेगा और मर जाएगा ।