"ऊंचाई है कि / लीलाधर जगूड़ी" के अवतरणों में अंतर
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = लीलाधर जगूड़ी }} मैं वह ऊंचा नहीं जो मात्र ऊंचाई पर हो...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार = लीलाधर जगूड़ी | |रचनाकार = लीलाधर जगूड़ी | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | मैं वह ऊँचा नहीं जो मात्र ऊँचाई पर होता है | ||
+ | कवि हूँ और पतन के अंतिम बिंदु तक पीछा करता हूँ | ||
+ | हर ऊँचाई पर दबी दिखती है मुझे ऊँचाई की पूँछ | ||
+ | लगता है थोड़ी सी ऊँचाई और होनी चाहिए थी | ||
− | + | पृथ्वी की मोटाई समुद्रतल की ऊँचाई है | |
− | + | लेकिन समुद्रतल से हर कोई ऊँचा होना चाहता है | |
− | + | पानी भी, उसकी लहर भी | |
− | + | यहाँ तक कि घास भी और किनारे पर पड़ी रेत भी | |
+ | कोई जल से कोई थल से कोई निश्छल से भी ऊँचा उठना चाहता है छल से | ||
+ | जल बादलों तक | ||
+ | थल शिखरों तक | ||
+ | शिखर भी और ऊँचा होने के लिए | ||
+ | पेड़ों की ऊँचाई को अपने में शामिल कर लेता है | ||
+ | और बर्फ़ की ऊँचाई भी | ||
+ | और जहाँ दोनों नहीं, वहाँ वह घास की ऊँचाई भी | ||
+ | अपनी बताता है | ||
− | + | ऊँचा तो ऊँचा सुनेगा, ऊँचा समझेगा | |
− | + | आँख उठाकर देखेगा भी तो सवाए या दूने को | |
− | + | लेकिन चौगुने सौ गुने ऊँचा हो जाने के बाद भी | |
− | + | ऊँचाई है कि हर बार बची रह जाती है | |
− | + | छूने को । | |
− | + | </poem> | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | लेकिन चौगुने सौ गुने | + | |
− | + | ||
− | + |
16:46, 5 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
मैं वह ऊँचा नहीं जो मात्र ऊँचाई पर होता है
कवि हूँ और पतन के अंतिम बिंदु तक पीछा करता हूँ
हर ऊँचाई पर दबी दिखती है मुझे ऊँचाई की पूँछ
लगता है थोड़ी सी ऊँचाई और होनी चाहिए थी
पृथ्वी की मोटाई समुद्रतल की ऊँचाई है
लेकिन समुद्रतल से हर कोई ऊँचा होना चाहता है
पानी भी, उसकी लहर भी
यहाँ तक कि घास भी और किनारे पर पड़ी रेत भी
कोई जल से कोई थल से कोई निश्छल से भी ऊँचा उठना चाहता है छल से
जल बादलों तक
थल शिखरों तक
शिखर भी और ऊँचा होने के लिए
पेड़ों की ऊँचाई को अपने में शामिल कर लेता है
और बर्फ़ की ऊँचाई भी
और जहाँ दोनों नहीं, वहाँ वह घास की ऊँचाई भी
अपनी बताता है
ऊँचा तो ऊँचा सुनेगा, ऊँचा समझेगा
आँख उठाकर देखेगा भी तो सवाए या दूने को
लेकिन चौगुने सौ गुने ऊँचा हो जाने के बाद भी
ऊँचाई है कि हर बार बची रह जाती है
छूने को ।