भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"वक़्त के साथ ढल गया हूँ मैं / ज्ञान प्रकाश विवेक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्ञान प्रकाश विवेक }} {{KKCatGhazal}} <poem> वक़्त के साथ ढल गय…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
10:28, 6 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
वक़्त के साथ ढल गया हूँ मैं
बस ज़रा-सा बदल गया हूँ मैं
लौट आना भी अब नहीं मुमकिन
इतना ऊँचा उछल गया हूँ मैं
रेलगाड़ी रुकेगी दूर कहीं
थोड़ा पहले सँभल गया हूँ मैं
आपके झूठे आश्वासन थे
मुझको देखो बहल गया हूँ मैं
मुझको लश्कर समझ रहे हैं आप
जोगियों-सा निकल गया हूँ मैं
मैं तो चाबी का इक खिलौना था
ये ग़नीमत कि चल गया हूँ मैं
हँस रही हैं ऊँचाइयाँ मेरी
सीढ़ियों से फिसल गया हूँ मैं