"घर शान्त है / मंगलेश डबराल" के अवतरणों में अंतर
(New page: {{KKGlobal}} रचनाकार: मंगलेश डबराल Category:कविताएँ Category:मंगलेश डबराल ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
− | रचनाकार | + | {{KKRachna |
− | + | |रचनाकार=मंगलेश डबराल | |
− | + | |संग्रह=हम जो देखते हैं / मंगलेश डबराल | |
− | + | }} | |
− | + | ||
22:09, 29 दिसम्बर 2007 का अवतरण
धूप दीवारों को धीरे धीरे गर्म कर रही है
आसपास एक धीमी आँच है
बिस्तर पर एक गेंद पड़ी है
किताबें चुपचाप हैं
हालाँकि उनमें कई तरह की विपदाएँ बंद हैं
मैं अधजगा हूँ और अधसोया हूँ
अधसोया हूँ और अधजागा हूँ
बाहर से आती आवाज़ों में
किसी के रोने की आवाज़ नहीं है
किसी के धमकाने या डरने की आवाज़ नहीं है
न कोई प्रार्थना कर रहा है
न कोई भीख माँग रहा है
और मेरे भीतर ज़रा भी मैल नहीं है
बल्कि एक ख़ाली जगह है
जहाँ कोई रह सकता है
और मैं लाचार नहीं हूँ इस समय
बल्कि भरा हुआ हूँ एक ज़रूरी वेदना से
और मुझे याद आ रहा है बचपन का घर
जिसके आँगन में औंधा पड़ा मैं
पीठ पर धूप सेंकता था
मैं दुनिया से कुछ नहीं माँग रहा हूँ
मैं जी सकता हूँ गिलहरी गेंद
या घास जैसा कोई जीवन
मुझे चिन्ता नहीं
कब कोई झटका हिलाकर ढहा देगा
इस शान्त घर को ।
(1990)