भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जब जब झाँका मैंने / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=राम जी भला करें / अनिल जनविजय
 
|संग्रह=राम जी भला करें / अनिल जनविजय
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita‎}}
 +
<poem>
 +
जब-जब झाँका, मैंने भीतर
 +
तेरे अंतस में
 +
मैंने पाया
 +
डूबी है तू प्रेम रस में
 +
 +
रश्मि रंगों से रंगा है मन
 +
तन में छाई है घोर अगन
 +
विकल कामना
 +
सुगंध रति की भीनी
 +
झिलमिल झलके वासना छवि झीनी
 +
 +
कर न पाए
 +
मति को तू किसी तरह भी बस में
 +
डूबी है तू प्रेम रस में
 +
 +
हृदय को सींचे प्रिय आलोक की छाया
 +
मन को टीसे सजन मोह की माया
 +
नेह वेदना
 +
विगलित तन दिगंबरा
 +
हरसिंगार-सी झरे स्मृति अंबरा
 +
 +
तू पाती है
 +
सुख प्रसव का इस व्यथा अवश में
 +
डूबी है तू प्रेम रस में
 +
 +
1999
 +
</poem>

12:46, 8 फ़रवरी 2011 का अवतरण

जब-जब झाँका, मैंने भीतर
तेरे अंतस में
मैंने पाया
डूबी है तू प्रेम रस में

रश्मि रंगों से रंगा है मन
तन में छाई है घोर अगन
विकल कामना
सुगंध रति की भीनी
झिलमिल झलके वासना छवि झीनी

कर न पाए
मति को तू किसी तरह भी बस में
डूबी है तू प्रेम रस में

हृदय को सींचे प्रिय आलोक की छाया
मन को टीसे सजन मोह की माया
नेह वेदना
विगलित तन दिगंबरा
हरसिंगार-सी झरे स्मृति अंबरा

तू पाती है
सुख प्रसव का इस व्यथा अवश में
डूबी है तू प्रेम रस में

1999