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रचनाकारः [[{{KKRachna|रचनाकार=अनिल जनविजय]][[Category:कविताएँ]][[Category:|संग्रह=राम जी भला करें / अनिल जनविजय]]}}{{KKCatKavita}}<poem>(हरि भटनागर के लिए )
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*इतने बरस बाद आज जब तुमको देखामन में आया बस एक यही जोखा-लेखाबदल गई दुनिया सारी पर तुम वहीं होजहाँ देखा था दशकों पहले वहीं कहीं हो सरल-सनेही वैसे ही तुम जैसे तब थेगर्मी-सर्दी-वर्षा ऋतु में तुम करतब थेटूटी चप्पल, पैन्ट-कमीज़ में घूमा करतेन माँगते किसी से कुछ, बस झूमा करते प्रीति रहती थी साथ तुम्हारे और थी भाषारचना की मन में रहती थी बस अभिलाषारंगों का संयोजन करती थी प्रीति तुम्हारीमैं डूबा रहता उस प्रीति में था बलिहारी दो-दो दिन तुम दोनों संग मैं करता फाकाजीवन को तब हमने सूखे चनों से हाँकायार-दोस्तों के शर-शूल सब सह जाते थेगृहविहीन हम यहाँ-वहाँ कहीं रह जाते थे आज बदलकर मैं हो गया मोटा-ताज़ातुम वैसे ही बने हुए हो सुक्खड़ राजाटूटी चप्पल, पैंट-कमीज़ में घूमा करतेन चाहो किसी से कुछ, बस झूमा करते 1997</poem>
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