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− | + | कि प्रेम कहाँ था किन-किन रंगों में | |
+ | और जहाँ नहीं था प्रेम उस वक़्त वहाँ क्या था | ||
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− | + | और आपस में प्राचीन दरख्तों की जड़ों की तरह | |
− | + | इतनी गुत्थम-गुत्था | |
− | कि | + | कि एक दो को भी निकाल कर |
− | + | हवा में नहीं दिखा सकता | |
− | + | जिस नदी में गोता लगाता हूँ | |
− | + | बाहर निकलने तक | |
− | + | या तो शहर बदल जाता है | |
− | + | या नदी के पानी का रंग | |
− | + | शाम कभी भी होने लगती है | |
− | + | और उनमें से एक भी दिखाई नहीं देता | |
− | जिस नदी में गोता लगाता हूँ | + | जिनके कारण चमकता है |
− | बाहर निकलने तक | + | |
− | या तो शहर बदल जाता है | + | |
− | या नदी के पानी का रंग | + | |
− | शाम कभी भी होने लगती है | + | |
− | और उनमें से एक भी दिखाई नहीं देता | + | |
− | जिनके कारण | + | |
अकेलेपन का पत्थर | अकेलेपन का पत्थर | ||
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17:55, 10 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
मैं रास्ते भूलता हूँ
और इसीलिए नए रास्ते मिलते हैं
मैं अपनी नींद से निकल कर प्रवेश करता हूँ
किसी और की नींद में
इस तरह पुनर्जन्म होता रहता है
एक जिन्दगी में एक ही बार पैदा होना
और एक ही बार मरना
जिन लोगों को शोभा नहीं देता
मैं उन्हीं में से एक हूँ
फिर भी नक्शे पर जगहों को दिखाने की तरह ही होगा
मेरा जिन्दगी के बारे में कुछ कहना
बहुत मुश्किल है बताना
कि प्रेम कहाँ था किन-किन रंगों में
और जहाँ नहीं था प्रेम उस वक़्त वहाँ क्या था
पानी, नींद और अँधेरे के भीतर इतनी छायाएँ हैं
और आपस में प्राचीन दरख्तों की जड़ों की तरह
इतनी गुत्थम-गुत्था
कि एक दो को भी निकाल कर
हवा में नहीं दिखा सकता
जिस नदी में गोता लगाता हूँ
बाहर निकलने तक
या तो शहर बदल जाता है
या नदी के पानी का रंग
शाम कभी भी होने लगती है
और उनमें से एक भी दिखाई नहीं देता
जिनके कारण चमकता है
अकेलेपन का पत्थर