भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सर झुकओगे तो पत्थर / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
छो
 
पंक्ति 20: पंक्ति 20:
 
सब उसी के हैं, हवा, ख़ुश्बू, ज़मीनो-आस्माँ,  
 
सब उसी के हैं, हवा, ख़ुश्बू, ज़मीनो-आस्माँ,  
 
मैं जहाँ भी जाऊँगा, उसको पता हो जाएगा ।
 
मैं जहाँ भी जाऊँगा, उसको पता हो जाएगा ।
 +
 +
रूठ जाना तो मोहब्बत की अलामत है मगर.
 +
क्या खबर थी मुझसे वो इतना खफा हो जायेगा.
 +
 
</poem>
 
</poem>

14:57, 14 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा ।
इतना मत चाहो उसे, वो बेवफ़ा हो जाएगा ।

हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है,
जिस तरफ़ भी चल पड़ेंगे, रास्ता हो जाएगा ।

कितना सच्चाई से, मुझसे ज़िंदगी ने कह दिया,
तू नहीं मेरा तो कोई, दूसरा हो जाएगा ।

मैं ख़ुदा का नाम लेकर, पी रहा हूँ दोस्तो,
ज़हर भी इसमें अगर होगा, दवा हो जाएगा ।

सब उसी के हैं, हवा, ख़ुश्बू, ज़मीनो-आस्माँ,
मैं जहाँ भी जाऊँगा, उसको पता हो जाएगा ।

रूठ जाना तो मोहब्बत की अलामत है मगर.
क्या खबर थी मुझसे वो इतना खफा हो जायेगा.