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"जिजीविषा / विजय कुमार पंत" के अवतरणों में अंतर

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19:27, 14 फ़रवरी 2011 का अवतरण

खूब कसरत कर रहा हूँ
धूप में भी मर रहा हूँ
भूख जितनी भी विकल हो
पेट भर का पी रहा हूँ
चित्र बनकर जी रहा हूँ......


सूत भर कर सूत धागे
उँगलियों में दर्द जागे
दो उनींदी आंख आगे
ज़िन्दगी यूँ सी रहा हूँ
चित्र बनकर जी रहा हूँ...

खूब सपने उग रहे हैं
और बारिश बो रही है
आज जैसा भी रहे पर
कल की चिंता हो रही है
हूँ वही.. जो भी रहा हूँ
चित्र बनकर जी रहा हूँ ...