भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

स्तालिन / मख़दूम मोहिउद्दीन

3,102 bytes added, 11:59, 15 फ़रवरी 2011
मूज़ी
दहन-ए आज़-ओ-हलाकत का शिकंजा लेकर
 
मेरे शाही के ख़िलाफ़
रात दिन हैं के चले आते हैं
नहीं जाएँगे कभी रायगाँ मेरे नग़मे
और मेरे हम वतनों के नग़मे
मेरे शाहीन <ref>बादशाह</ref> तो मन्सूरी मुज़फ़्फ़र <ref>मंसूर और मुज़फ़्फ़र जैसे प्रशंसनीय विजेता</ref> ही रहेंगे दाएमदोएम<ref>हमेशा</ref>सूसमाराने खिज़िन्दा <ref>गोह को जगाने वाला</ref> दरगोर
मेरा शाहीन, मेरा स्तालिन
मेरे शाहीन बच्चे, जिनका अभी नाम नहीं
सुर्ख़रू और सर‍अफ़राज़ <ref>विजयी, सफल</ref> फ़िज़ाओं में बुलन्द
हाँ मेरे हम वतनो
जाओ और अपने समन्दों <ref>घोड़ों</ref> को तो महमेज़ <ref>नाल ठोंक कर ठीक करो</ref> करोसुर्ख़ फ़ौजों में मिलोजू<ref>दरिया</ref>-ए पुरजोश बनो, बर्क़ का सैलाब बनो और बहोइक दहकते हुए पिघले हुए लोहे का समुन्दर बनकरग़ज़बआलूद<ref>ग़ज़ब ढाने वाली</ref> भँवर बन जाओऔर फ़ासिस्ट ख़नाज़ीर<ref>सुअर</ref> कोफ़िन्नार<ref>बर्बाद कर दो</ref> करोमेरे बलख़ाश कहाँ है वो मिस<ref>ताम्बा</ref>-ए-सुर्ख़ तेराउससे कहना सरे दुश्मन पे गिरे शल बनकरबहर-ए- अखज़र<ref>कैस्पियन सागर</ref> के ओ माहीगिरो<ref>मछियारो</ref> । ग़ोताज़नोअपना ज़खीरा लाओऔर कुर्बान-ए वतन कर डालोम‍अदनों<ref>खान के मज़दूर</ref> से कहो और खेतों को आवाज़ तो दोलाएँ वो अपने सिन-ओ-साल<ref>सारी उम्र का</ref> का हासिल लाएँऔर कुर्बान वतन कर डालेंये हैं रहवार, ये पशमीना हैं, ये खिर्मन<ref>खेत</ref> हैंमेरे महबूब वतनसबके सब तेरे हैं सब तेरे हैस्तालिन ने मैदाँ में बुलाया है हमेंकस्ब<ref>मेहनत</ref> और जहद<ref>संघर्ष</ref> का पैग़ाम सुनाया है हमेंखित्त-ए क़ुद्स से<ref>देश की पवित्र धरती के खण्ड से</ref> दुश्मन को निकालो बाहरकज़ाख़स्तान !वतन !अपनी ताक़त को समेटे हुए उठख़ैज़<ref>मौज-तरंग</ref> बासद हश्म<ref>सैकड़ों आँखें</ref> व जाह<ref>प्रतिष्ठा</ref>-ओ-जलाल<ref>तेजस्विता</ref>बहज़ाराँ जबरुत<ref>हज़ारों श्रेष्ठताएँ</ref>एक जान एक जसद<ref>शरीर</ref>फूँक दे दुश्मने नापाक की खाकिस्तर<ref>राख़</ref> को
</poem>
{{KKMeaning}}
<ref></ref>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,340
edits