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"स्तालिन / मख़दूम मोहिउद्दीन" के अवतरणों में अंतर

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17:43, 15 फ़रवरी 2011 का अवतरण

नब्बे साला बूढ़े तातारी शायर जम्बूल जाबर की नज़्म का मुक्त अनुवाद

सफे आदा<ref>दुश्मन की कतार</ref> के मुक़ाबिल है हमारा रहबर स्तालिन
मादर-ए-रूस की आँखों का दरख़्शाँ<ref>जगमगाता</ref> तारा
जिसकी ताबानी<ref>तेज</ref> से ज़ामिन है ज़मीं
वो ज़मीं और वो वतन
जिसकी आज़ादी का ज़ामिल है शहीदों का लहू
जिसकी बुनियादों में जम्हूर<ref>जनता</ref> का अर्क़<ref>रस</ref>
उनकी मेहनत का उक़ूवत<ref>सद्भावना</ref> का मुहब्बत का ख़मीर
वो ज़मीं
उसका जलाल<ref>तेज</ref>
उसका हश्म<ref>शान</ref>
क्या मैं इस रज़्म<ref>युद्ध</ref> का ख़ामूश तमाशाई बनूँ
क्या मैं जन्नत को जहन्नुम के हवाले कर दूँ
क्या मुजाहिद न बनूँ ?
क्या मैं तलवार उठाऊँ न वतन की ख़ातिर
मेरे प्यारे मेरे फ़िरदौस बदन<ref>स्वर्ग के से शरीर वाली पवित्र मातृभूमि</ref> की ख़ातिर
ऐसे हंगाम-ए क़यामत में मेरा नग़म-ए- शौक
क्या मेरे हमवतनों के दिल में

ज़िन्दगी और मसर्रत<ref>आनन्द</ref> बनकर
न समा जाएगा ?


क़ुर्रतुलएन<ref>आँखों का तारा</ref> ! मेरी जान-ए अज़ीज़
ओ मेरे फ़रज़न्दो<ref>पुत्रो</ref> !
बर्क़-पा<ref>बिजली की गति से दौड़ने वाला</ref> वो मेरा रहवार<ref>घोड़ा</ref> कहाँ है लाना
तिश्न-ए खूँ<ref>ख़ून की प्यास</ref> मेरी तलवार कहाँ है लाना
मेरे नग़मे तो वहाँ गूँजेंगें
है मेरा क़ाफ़िला सालार जहाँ स्तालिन


वो मेरा मुल्के जवाँ
वो मेरा बाद-ए-अहमर<ref>लाल रंग की मदिरा</ref> का जवाँ साल सबू<ref>यौवन्से भरा मधु-घट</ref>
मेरी नौख़ेज़<ref>नई उभरी हुई</ref> मसर्रत का जहाँ
वो मेरा सर्वे रवाँ<ref>सर्वश्रेष्ठ सरदार</ref> मुल्के जवाँ
वलदुलजुर्म<ref>हरामी</ref> ख़ताकार दरिन्दों ने जहाँ
अपने नापाक इरादों से क़दम रखा है
एक नौख़ेज़ कली एक नौआशाज़ वश्र<ref>नवोदित मानव</ref>
वो मेरा मुल्के जवाँ
सच कहा है कि-- "ज़मीं के कीड़े
अपनी बेवक़्त अजल<ref>मृत्यु</ref> से डर कर
थरथराते हुए सहमे हुए घबराए हुए
निकल आए हैं बिलों से बाहर"
अपने फ़ौलाद से रौज़न<ref>छिद्रों</ref> के दहन<ref>मुँह</ref> बन्द करो
और फ़ासिस्ट शिग़ालों से कहो
नग़म-ए-अव्वल वो आख़िर है यही

क़ुर्रतुलएन ! मेरी जान-ए अज़ीज़
ओ मेरे फ़रज़न्दो !
बर्क़-पा वो मेरा रहवार कहाँ है लाना
तिश्न-ए खूँ मेरी तलवार कहाँ है लाना
मेरे नग़मे तो वहाँ गूँजेंगें
है मेरा क़ाफ़िला सालार जहाँ स्तालिन

यही महशर<ref>मन बहलाने वाले महाप्रलय का दिन</ref> है दो आलम का तसादुम<ref>लड़ाई-झगड़ा</ref> है यही
एक पुराना आलम
एक नया
एक मरती हुई बुढ़िया का लंगड़ता हुआ पाँव
एक ढलती हुई छाँव
दूसरा एक उभरते हुए सीने का शबाब
तेज़ और तुन्द<ref>तीख़ी</ref> शराब
पेट से रेंगने वाले ये नज़स<ref>कीड़े</ref> और नापाक
सूसमार<ref>गोह</ref>
दौर-ए-वहशत के दरिन्दे
मूज़ी<ref>अत्याचारी</ref>
दहन-ए आज़<ref>लोभ और लालच का मुँह लेकर</ref>-ओ-हलाकत<ref>मृत्यु</ref> का शिकंजा लेकर
मेरे शाही के ख़िलाफ़
रात दिन हैं के चले आते हैं
नहीं जाएँगे कभी रायगाँ मेरे नग़मे
और मेरे हम वतनों के नग़मे
मेरे शाहीन<ref>बादशाह</ref> तो मन्सूरी मुज़फ़्फ़र<ref>मंसूर और मुज़फ़्फ़र जैसे प्रशंसनीय विजेता</ref> ही रहेंगे दोएम<ref>हमेशा</ref>
सूसमाराने खिज़िन्दा<ref>गोह को जगाने वाला</ref> दरगोर
मेरा शाहीन, मेरा स्तालिन
मेरे शाहीन बच्चे, जिनका अभी नाम नहीं
सुर्ख़रू और सर‍अफ़राज़<ref>विजयी, सफल</ref> फ़िज़ाओं में बुलन्द
हाँ मेरे हम वतनो
जाओ और अपने समन्दों<ref>घोड़ों</ref> को तो महमेज़<ref>नाल ठोंक कर ठीक करो</ref> करो
सुर्ख़ फ़ौजों में मिलो
जू<ref>दरिया</ref>-ए पुरजोश बनो, बर्क़ का सैलाब बनो और बहो
इक दहकते हुए पिघले हुए लोहे का समुन्दर बनकर
ग़ज़बआलूद<ref>ग़ज़ब ढाने वाली</ref> भँवर बन जाओ
और फ़ासिस्ट ख़नाज़ीर<ref>सुअर</ref> को
फ़िन्नार<ref>बर्बाद कर दो</ref> करो
मेरे बलख़ाश कहाँ है वो मिस<ref>ताम्बा</ref>-ए-सुर्ख़ तेरा
उससे कहना सरे दुश्मन पे गिरे शल बनकर
बहर-ए- अखज़र<ref>कैस्पियन सागर</ref> के ओ माहीगिरो<ref>मछियारो</ref> । ग़ोताज़नो
अपना ज़खीरा लाओ
और कुर्बान-ए वतन कर डालो
म‍अदनों<ref>खान के मज़दूर</ref> से कहो और खेतों को आवाज़ तो दो
लाएँ वो अपने सिन-ओ-साल<ref>सारी उम्र का</ref> का हासिल लाएँ
और कुर्बान वतन कर डालें
ये हैं रहवार, ये पशमीना हैं, ये खिर्मन<ref>खेत</ref> हैं
मेरे महबूब वतन
सबके सब तेरे हैं सब तेरे है
स्तालिन ने मैदाँ में बुलाया है हमें
कस्ब<ref>मेहनत</ref> और जहद<ref>संघर्ष</ref> का पैग़ाम सुनाया है हमें
खित्त-ए क़ुद्स से<ref>देश की पवित्र धरती के खण्ड से</ref> दुश्मन को निकालो बाहर
कज़ाख़स्तान !
वतन !
अपनी ताक़त को समेटे हुए उठ
ख़ैज़<ref>मौज-तरंग</ref> बासद हश्म<ref>सैकड़ों आँखें</ref> व जाह<ref>प्रतिष्ठा</ref>-ओ-जलाल<ref>तेजस्विता</ref>
बहज़ाराँ जबरुत<ref>हज़ारों श्रेष्ठताएँ</ref>
एक जान एक जसद<ref>शरीर</ref>
फूँक दे दुश्मने नापाक की खाकिस्तर<ref>राख़</ref> को

शब्दार्थ
<references/>