भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इस तरह साथ निभना है दुश्वार सा / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बशीर बद्र |संग्रह=आस / बशीर बद्र }} {{KKCatGhazal}} <poem> इस तरह…)
 
(कोई अंतर नहीं)

17:02, 16 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

इस तरह साथ निभना है दुश्वार सा
तू भी तलवार सा मैं भी तलवार सा

अपना रंगे ग़ज़ल उसके रुखसार सा
दिल चमकने लगा है रुख ए यार सा

अब है टूटा सा दिल खुद से बेज़ार सा
इस हवेली में लगता था दरबार सा

खूबसूरत सी पैरों में ज़ंजीर हो
घर में बैठा रहूँ मैं गिरफ्तार सा

मैं फरिश्तों के सुहबत के लायक नहीं
हम सफ़र कोई होता गुनहगार सा

गुड़िया गुड्डे को बेचा खरीदा गया
घर सजाया गया रात बाज़ार सा

बात क्या है कि मशहूर लोगों के घर
मौत का सोग होता है त्योहार सा