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"इस तरह साथ निभना है दुश्वार सा / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर
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17:02, 16 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
इस तरह साथ निभना है दुश्वार सा
तू भी तलवार सा मैं भी तलवार सा
अपना रंगे ग़ज़ल उसके रुखसार सा
दिल चमकने लगा है रुख ए यार सा
अब है टूटा सा दिल खुद से बेज़ार सा
इस हवेली में लगता था दरबार सा
खूबसूरत सी पैरों में ज़ंजीर हो
घर में बैठा रहूँ मैं गिरफ्तार सा
मैं फरिश्तों के सुहबत के लायक नहीं
हम सफ़र कोई होता गुनहगार सा
गुड़िया गुड्डे को बेचा खरीदा गया
घर सजाया गया रात बाज़ार सा
बात क्या है कि मशहूर लोगों के घर
मौत का सोग होता है त्योहार सा