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"हँसी मासूम सी बच्चों की कापी में / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर

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हँसी मासूम सी बच्चों की कापी में इबारत सी
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हिरन की पीठ पर बैठे परिन्दे की शरारत सी
  
हँसी मासूम सी बच्चों की कापी में इबारत सी<br>
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वो जैसे सर्दियों में गर्म कपड़े दे फ़क़ीरों को
हिरन की पीठ पर बैठे परिन्दे की शरारत सी<br><br>
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लबों पे मुस्कुराहट थी मगर कैसी हिक़ारत सी
  
वो जैसे सर्दियों में गर्म कपड़े दे फ़क़ीरों को<br>
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उदासी पतझड़ों की शाम ओढ़े रास्ता तकती
लबों पे मुस्कुराहट थी मगर कैसी हिक़ारत सी<br><br>
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पहाड़ी पर हज़ारों साल की कोई इमारत सी
  
उदासी पतझड़ों की शाम ओढ़े रास्ता तकती<br>
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सजाये बाज़ुओं पर बाज़ वो मैदाँ में तन्हा था
पहाड़ी पर हज़ारों साल की कोई इमारत सी<br><br>
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चमकती थी ये बस्ती धूप में ताराज ओ ग़ारत सी
  
सजाये बाज़ुओं पर बाज़ वो मैदाँ में तन्हा था<br>
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मेरी आँखों, मेरे होंटों से कैसी तमाज़त है
चमकती थी ये बस्ती धूप में ताराज ओ ग़ारत सी<br><br>
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कबूतर के परों की रेशमी उजली हरारत सी
  
मेरी आँखों, मेरे होंटों से कैसी तमाज़त है<br>
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खिला दे फूल मेरे बाग़ में पैग़म्बरों जैसा
कबूतर के परों की रेशमी उजली हरारत सी<br><br>
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रक़म हो जिस की पेशानी पे इक आयत बशारत सी
 
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खिला दे फूल मेरे बाग़ में पैग़म्बरों जैसा<br>
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रक़म हो जिस की पेशानी पे इक आयत बशारत सी<br>
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रचनाकाल - 1980
 
रचनाकाल - 1980
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17:05, 16 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण

हँसी मासूम सी बच्चों की कापी में इबारत सी
हिरन की पीठ पर बैठे परिन्दे की शरारत सी

वो जैसे सर्दियों में गर्म कपड़े दे फ़क़ीरों को
लबों पे मुस्कुराहट थी मगर कैसी हिक़ारत सी

उदासी पतझड़ों की शाम ओढ़े रास्ता तकती
पहाड़ी पर हज़ारों साल की कोई इमारत सी

सजाये बाज़ुओं पर बाज़ वो मैदाँ में तन्हा था
चमकती थी ये बस्ती धूप में ताराज ओ ग़ारत सी

मेरी आँखों, मेरे होंटों से कैसी तमाज़त है
कबूतर के परों की रेशमी उजली हरारत सी

खिला दे फूल मेरे बाग़ में पैग़म्बरों जैसा
रक़म हो जिस की पेशानी पे इक आयत बशारत सी



रचनाकाल - 1980