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"आग सीने में मोहब्बत की लगा देते हैं / सिराज फ़ैसल ख़ान" के अवतरणों में अंतर
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आग सीने में मोहब्बत की लगा देते हैं | आग सीने में मोहब्बत की लगा देते हैं | ||
− | "मीर" मिलते | + | "मीर" मिलते हैं मुझे जब भी रुला देते हैं |
एक तुम हो कि गुनाह कह के टाल जाते हो | एक तुम हो कि गुनाह कह के टाल जाते हो |
17:32, 17 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
आग सीने में मोहब्बत की लगा देते हैं
"मीर" मिलते हैं मुझे जब भी रुला देते हैं
एक तुम हो कि गुनाह कह के टाल जाते हो
एक "ग़ालिब" हैं कि हर रोज़ पिला देते हैं
मैंने "राहत" से कहा फूँक दो दिल की दुनिया
वो मेरे ख़त को उठाते हैं जला देते हैं
जब भी "राना" से मोहब्बत का पता पूछता हूँ
हँस के माँ पर वो कोई शे'र सुना देते हैं ।