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"गाँव की धूल भरी गलियों से शहर की सड़कों तक / सिराज फ़ैसल ख़ान" के अवतरणों में अंतर
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17:37, 17 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
गाँव की धूल भरी गलियों से शहर की सड़कों तक
ठोकर खाते-खाते आए हैं हम सपनों तक
बात शुरू की ज़िक्र से तेरे, मैख़ाने में पर
चलते-चलते आ पहुँचे हम दिल के ज़ख्मों तक
कितनी रातें जाग के काटीं पूछो तो हमसे
वक़्त लगा कितना आने में उनके होंठों तक
कितना ही मैं ख़ुद को छुपाऊँ कितना ही बहलाऊँ
आँसू आ ही जाते हैं पर मेरी पलकों तक
रोज़ ग़ज़ल का फूल लगा देते ज़ुल्फ़ों में हम
अगर हमारे हाथ पहुँचते उनकी ज़ुल्फ़ों तक