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"भूल सकते तुम्हें तो कब का भुला देते हम / सिराज फ़ैसल ख़ान" के अवतरणों में अंतर
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− | भूल सकते | + | भूल सकते तुम्हें तो कब का भुला देते हम |
ख़ाक जो होती मोहब्बत तो उड़ा देते हम | ख़ाक जो होती मोहब्बत तो उड़ा देते हम | ||
− | ख़ुदकुशी जुर्म ना होती ख़ुदा की | + | ख़ुदकुशी जुर्म ना होती ख़ुदा की नज़रों में |
− | कब का इस जिस्म को मिट्टी | + | कब का इस जिस्म को मिट्टी में मिला देते हम |
− | बना रख्खी | + | बना रख्खी हैं तुमने दूरियाँ हमसे वर्ना |
कोई दीवार जो होती तो गिरा देते हम | कोई दीवार जो होती तो गिरा देते हम | ||
− | तुमने कोशिश ही | + | तुमने कोशिश ही नहीं की हमें समझने की |
− | फिर भला कैसे | + | फिर भला कैसे तुम्हें हाल सुना देते हम |
आपने आने का पैग़ाम तो भेजा होता | आपने आने का पैग़ाम तो भेजा होता | ||
− | तमाम शहर को | + | तमाम शहर को फूलों से सजा देते हम |
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17:45, 17 फ़रवरी 2011 का अवतरण
भूल सकते तुम्हें तो कब का भुला देते हम
ख़ाक जो होती मोहब्बत तो उड़ा देते हम
ख़ुदकुशी जुर्म ना होती ख़ुदा की नज़रों में
कब का इस जिस्म को मिट्टी में मिला देते हम
बना रख्खी हैं तुमने दूरियाँ हमसे वर्ना
कोई दीवार जो होती तो गिरा देते हम
तुमने कोशिश ही नहीं की हमें समझने की
फिर भला कैसे तुम्हें हाल सुना देते हम
आपने आने का पैग़ाम तो भेजा होता
तमाम शहर को फूलों से सजा देते हम