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"हादसे सबकी ही क़िस्मत में, लिखूँ किस-किस पर / सिराज फ़ैसल ख़ान" के अवतरणों में अंतर
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अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
छो (हादसे सबकी ही क़िस्मत मेँ लिखूँ किस-किस पर / सिराज फ़ैसल ख़ान का नाम बदलकर हादसे सबकी ही क़िस्मत मे) |
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17:49, 17 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
हादसे सबकी ही क़िस्मत में लिखूँ किस-किस पर
सारी दुनिया है मुसीबत मेँ लिखूँ किस-किस पर
तेरे बारे में लिखूँ गर मिले फुर्सत ख़ुद से
मैं परीशाँ हूँ हक़ीक़त में लिखूँ किस-किस पर
इश्क़ "ग़ालिब" की अमानत है वफ़ा "साहिर" की
दिल तो है "मीर" की सोहबत में लिखूँ किस-किस पर
उम्र भर मन्दिर-ओ-मस्जिद से ही फ़ुर्सत ना मिली
ज़िन्दगी कट गई नफ़रत में लिखूँ किस-किस पर