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"नज़र में ख़्वाब नए रात भर सजाते हुए / श्रद्धा जैन" के अवतरणों में अंतर
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कहा है कान में कुछ उसने पास आते हुए | कहा है कान में कुछ उसने पास आते हुए | ||
20:48, 17 फ़रवरी 2011 का अवतरण
नज़र में ख़्वाब नए रात भर सजाते हुए
तमाम रात कटी तुमको गुनगुनाते हुए
तुम्हारी बात, तुम्हारे ख़याल में गुमसुम
सभी ने देख लिया हमको मुस्कराते हुए
फ़ज़ा में देर तलक साँस के शरारे थे
कहा है कान में कुछ उसने पास आते हुए
हरेक नक्श तमन्ना का हो गया उजला
तेरी छुअन थी कि जुगनू थे जगमगाते हुए
दिल-ओ-निगाह की साजिश जो कामयाब हुई
हमें भी आया मज़ा फिर फरेब खाते हुए
बुरा कहो कि भला पर यही हक़ीकत है
पड़े हैं पाँव में छाले वफ़ा निभाते हुए